मानवीय संविधान

by A Nagraj

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समृद्धि, स्नेह, समझदारी (समाधान), सरलता, वर्तमान में विश्वासवादी एव विश्वासकारी ज्ञान, विज्ञान, विवेक सम्मत मानसिकता विचार का प्रमाण।

6.6 (7) सामाजिक नियम

स्वधन, स्वनारी, स्वपुरुष, दयापूर्ण कार्य-व्यवहार का प्रमाण परंपरा।

जागृत मानव सहज अभिव्यक्ति-सम्प्रेषणा

अभ्युदय के अर्थ में व्यक्त रहना।

सर्वतोमुखी समाधान सहज प्रमाण परंपरा के रूप में वर्तमान रहना।

ज्ञान, विज्ञान, विवेक सम्पन्नता का प्रमाण और प्रमाण सहज परंपरा, परंपरा ही पीढ़ी से पीढ़ी अखण्ड समाज परंपरा, सार्वभौम व्यवस्था परंपरा, स्वतंत्रता स्वराज्य सहज परंपरा, मानवीयता पूर्ण आचरण परंपरा, मानवीय आचार संहिता रूपी संविधान परंपरा, दश सोपानीय सार्वभौम व्यवस्था परंपरा ही जागृत मानव सहज अभिव्यक्ति सम्प्रेषणा प्रकाशन है।

आहार विहार का अधिकार

मानवीय आहार मानव शरीर-रचना के आधार पर निश्चित होता है।

  • अस्तित्व में जीव शरीर, मानव शरीर रचनायें गर्भाशय में होना पाया जाता है। यह पिण्डज संसार का वैभव है। शाकाहारी शरीर का अध्ययन करने से पता चलता है कि शाकाहारी जीव और मानव ओंठ के सहारे पानी पीते हैं जबकि मांसाहारी जीव जीभ से पानी पीते हैं।
  • मांसाहारी जीवों के पैरों के नाखून व दाँत पैने होते हैं। जबकि शाकाहारी जीवों और मानव के पैरों और हाथों के नख और दाँत उतने पैने नहीं होते।
  • मांसाहारी शरीर में आंते लम्बाई में छोटी होती है। शाकाहारी की आंते लम्बी होती है।

मांसाहारी और शाकाहारी जीवों का निश्चित आचरण देखने को मिलता है जैसा बाघ और गाय। इनका आचरण निश्चित रहता है। मानव का अध्ययन से पता चलता है कि दोनों प्रकार का आहार करते हुए भी मानव का आचरण सुनिश्चित नहीं होता।