मानवीय संविधान
by A Nagraj
अर्पण-समर्पण विधि से स्वतंत्रता अधिकार है। मानव लक्ष्य प्रमाण सहित जीवन मूल्य जागृति सहज प्रमाण परंपरा है। अखण्डता व सार्वभौमता सहज परंपरा वैभव है।
स्वतंत्रता
ज्ञान, विवेक, विज्ञान सम्पन्नता पूर्वक अखण्डता सार्वभौमता सूत्र व्याख्या स्वयं स्फूर्त होना ही सार्थक स्वतंत्रता है। यह जागृति सहज वैभव है।
4.7 (1) अखण्ड समाज
अखण्ड समाज = मानव जाति में एक, धर्म एक होने का ज्ञान, स्वीकृति व प्रमाण परंपरा ही मानवीय संस्कृति सभ्यता है। अखण्ड समाज के अर्थ में सार्वभौम व्यवस्था का प्रमाण परंपरा ही राष्ट्रीयता है।
4.7 (2) सहअस्तित्व
सहअस्तित्व ही नित्य प्रमाण वर्तमान है।
सहअस्तित्व = सत्ता में सम्पृक्त जड़-चैतन्य प्रकृति चार अवस्था व पदों में विद्यमान वर्तमान है।
नित्य प्रमाण = सामाजिक अखण्डता, व्यवस्था सहज सार्वभौमता।
वर्तमान = चारों अवस्थाओं व पदों में संतुलन पूरकता-उपयोगिता सहज वर्तमान है।
सहअस्तित्व सदा वैभव सहज प्रमाण सदा वर्तमान रूप में होना, मानव परंपरा में सदा प्रमाण होना, समझ सम्पन्नता सहित परंपरा ही वर्तमान होना वैभव है।
सहअस्तित्व में भौतिक, रासायनिक व जीवन क्रिया दृष्टव्य है, वर्तमान है। दृष्टा मानव है।
सहअस्तित्व में विकास क्रम, विकास, जागृतिक्रम, जागृति नित्य वर्तमान सहज होना दृष्टव्य है।
सहअस्तित्व ही नित्य वैभव है, क्योंकि व्यापक में एक-एक वस्तुओं का सम्पृक्त वर्तमान अविभाज्य रूप में होना रहता ही है। व्यापक वस्तु सर्व देशकाल में यथावत है।