मानवीय संविधान

by A Nagraj

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परंपरा के रूप में मौलिकता की निरंतरता, मूल्यांकन, परस्परता में तृप्ति संतुलन अर्थात् समाधान प्रमाण वर्तमान = सुख।

सत्य = न्याय व समाधान प्रमाणित होना ही सहअस्तित्व रूपी परम सत्य में अनुभव प्रमाण। यही मानव संचेतना है।

4.6 (13) मानव संचेतना-चेतना

संचेतना =

  • पूर्णता के अर्थ में अपेक्षा समझ प्रमाण ही संचेतना, समझ पूर्णता सहज प्रमाण परंपरा ही चेतना, क्रियापूर्णता, आचरणपूर्णता के अर्थ में वर्तमान, जानना, मानना, पहचानना, निर्वाह करना ही मानव चेतना, देव चेतना, दिव्य चेतना है।
  • संज्ञानीयता में संवेदनाये नियंत्रित रहना ही प्रमाण - संज्ञानीयता अर्थात् जानने मानने की सम्पूर्ण वस्तुयें सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व ही है।

सहअस्तित्व में ही जीवन क्रियाकलाप, शारीरिक रचना-विरचना, रासायनिक क्रियाकलाप, भौतिक क्रियाकलाप, शरीर व जीवन का संयुक्त क्रियाकलाप के रूप में मानव क्रियाकलाप है। यही जागृति है। इसको समझना ही जागृति है। सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व में मानव ही संज्ञान सम्पन्न अथवा मानव चेतना ही संज्ञानीयता है।