मानवीय संविधान

by A Nagraj

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4.6 (14) जीवन बल व शक्ति

जागृत जीवन में-

परावर्तन-प्रत्यावर्तन क्रम से परंपरा में प्रमाण, कार्य व्यवहार, फल-परिणाम, मूल्यांकन और नियम, नियंत्रण, संतुलन, न्याय, धर्म (समाधान), सत्य रूपी महिमाओं के अनुरूप अभिव्यक्ति सम्प्रेषणा प्रकाशन निरंतरता सर्वमानव में समान स्वत्व है। यही परस्पर