मानवीय संविधान

by A Nagraj

Back to Books
Page 12
  • मानव में निपुणता, कुशलता, पाण्डित्यपूर्ण कार्य-व्यवहार विन्यास ही नियम पूर्ण व्यवसाय, न्यायपूर्ण व्यवहार, समाधान पूर्ण विचार, प्रामाणिकता पूर्ण अनुभूतियों की अभिव्यक्ति, सम्प्रेषणा व प्रकाशन क्रिया।
  • विधान प्रबुद्धता में
  • प्रबुद्धता ही विधि सूत्र है। मानव में प्रबुद्धता, परिवार में संप्रभुता (न्याय व समाधान सहज प्रमाण) एवं अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था में प्रभुसत्ता अर्थात् प्रबुद्धता पूर्ण सत्ता प्रमाण है।
  • विधि सहज धारणा अर्थात् समझदारी पूर्वक किया गया व्यवहार, व्यवसाय, आचरण और सुगम बनाने की प्रक्रिया।
  • विधि
  • मानवीय संस्कृति-सभ्यता सहज नियम सहज आचरण सूत्र व्याख्या।
  • नियम, नियंत्रण, संतुलन, न्याय, धर्म, सत्य सहज अभिव्यक्ति, सम्प्रेषणा, प्रकाशन ही मानवीय संस्कृति सहज आचरण-संहिता।
  • मानवीयता पूर्ण व्यवहार, आचरण, उत्पादन, विनिमय, मानवीय शिक्षा संस्कार, तन-मन-धन रूपी अर्थ का सदुपयोग और सुरक्षात्मक सूत्र और व्याख्या। विकास और जागृति, सतर्कता, सजगता, गुणात्मक विकास सहज प्रमाण में जीवन जागृति व जागृतिपूर्णता ही आचरणपूर्णता सहज सूत्र और व्याख्या है।
  • पूर्णता और उसकी निरंतरता के अर्थ में नियम, न्याय, धर्म और सत्य में अनुभव सहज जागृत मानव परंपरा में ही सूत्र और व्याख्या सम्मत प्रामाणिकता पूर्ण प्रक्रिया का प्रावधान।
  • व्यवस्था
  • अनुभव-व्यवहार-प्रयोग प्रमाण सहित परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था में भागीदारी।
  • वर्तमान में मानवत्व अर्थात् मानवीय आचरण, संस्कृति-सभ्यता, विधि-व्यवस्था सम्मत व्यवहार कार्य परंपरा।

विधि के अर्थ में नीति सहज निर्वाह परंपरा ही व्यवहार गति में स्थायित्व व निरंतरता और वर्तमान में विश्वास परंपरा।