मानवीय संविधान

by A Nagraj

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  • धार्मिक (सामाजिक), आर्थिक, राज्यनीतिक क्रिया अविभाज्य रूप में जागृत मानव परंपरा।
  • आयाम = प्रत्येक एक में चार आयाम - रूप, गुण, स्वभाव, धर्म।

मानव में चार आयाम – उत्पादन, व्यवहार, विचार, अनुभव।

  • काल = क्रिया की अवधि।
  • कोण (दृष्टिकोण) = जीव चेतना, मानव चेतना, देव चेतना, दिव्य चेतना के आधार पर दृष्टिकोण। निश्चित बिन्दु से अनंत कोण।
  • चरित्र
  • स्वधन, स्वनारी-स्वपुरुष, दयापूर्ण कार्य-व्यवहार।
  • स्वयं में विश्वास चरितार्थतापूर्वक, श्रेष्ठता का सम्मान करने चरितार्थतापूर्वक, प्रतिभा में विश्वास चरितार्थतापूर्वक, प्रतिभा और व्यक्तित्व में संतुलन चरितार्थतापूर्वक, व्यवहार में सामाजिक रहते हुए व्यवसाय में स्वावलंबी रहने में चरितार्थतापूर्वक प्रमाण।

प्रतिभा = ज्ञान, विवेक, विज्ञान

व्यक्तित्व = मानवीयता, देव मानवीयता, दिव्य मानवीयता सहज रूप में।

  • जागृत मानव
  • मानव चेतना सहज मूल्य, चरित्र, नैतिकता।
  • त्व सहित मानवीयतापूर्ण आचरण समेत व्यवस्था, समग्र व्यवस्था में भागीदारी।
  • अतिव्यवाप्ति, अनाव्याप्ति, अव्याप्ति दोषों से मुक्ति।
  • क्रियापूर्णता अर्थात् सर्वतोमुखी समाधान परंपरा के रूप में वैभव और आचरणपूर्णता अर्थात् अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था सहज परंपरा में भागीदारी सहित वैभव।
  • जागृति
  • क्रियापूर्णता, आचरणपूर्णता (सजगता)।
  • भ्रम से मुक्ति।

भ्रममुक्त जीवन, जागृति परम सहज प्रकाशन।