मानवीय संविधान

by A Nagraj

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  • मनाकार को साकार करने वाला, मन:स्वस्थता के लिए आशावादी व प्रमाणित करने वाला।
  • जड़-चैतन्य का संयुक्त साकार रूप।
  • अस्तित्व, विकास, जीवन, जीवन जागृति, रासायनिक और भौतिक रचना-विचरना का दृष्टा एवं जागृति सहज प्रमाण।
  • मूल्य
  • मौलिकता (मानव में ही प्रगट होना आवश्यक)।
  • प्रत्येक इकाई में निहित मौलिकता। (मानव ही पहचानता है)।
  • जीवन मूल्य, मानव मूल्य, स्थापित मूल्य, शिष्ट मूल्य, वस्तु मूल्य (30 कुल मूल्य)। उपयोगिता एवं कला की सिद्ध मात्रा = उत्पादित वस्तु मूल्य, स्थापित संबंधों में निहित स्थापित मूल्य, जिसका अनुभव में, से, के लिए अभिव्यक्ति सम्प्रेषणा से प्रकाशित होने वाला शिष्ट मूल्य।
  • मानवीय आचरण
  • स्वधन, स्वनारी-स्वपुरुष, दयापूर्ण कार्य-व्यवहार विन्यास।
  • संबंधों की पहचान, मूल्यों का निर्वाह मूल्यांकन एवं उभयतृप्ति।
  • तन, मन, धन रूपी अर्थ की सुरक्षा और सदुपयोग।
  • मूल्य, चरित्र, नैतिकता का अविभाज्य वर्तमान रूप में किया गया संपूर्ण कार्य, व्यवहार, विचार विन्यास।
  • मानवीय मूल्य = जीवन मूल्य, मानव मूल्य, स्थापित मूल्य, शिष्ट मूल्य।
  • राज्य - परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था में भागीदारी
  • सहअस्तित्व सहज मानवत्व सहित व्यवस्था में वैभव।
  • मानव परंपरा में परिवार मूलक स्वराज्य, स्वानुशासन रूपी स्वतंत्रता सहज वैभव परंपरा।
  • राष्ट्र
  • दृष्टापद सहज जागृति पूर्ण मानव परंपरा ही अखण्ड राष्ट्र चेतना, व्यवस्था सहज प्रमाण।

मानवीय आचार संहिता रूपी संविधान का प्रभाव सहज आचरण परंपरा। धरती अखण्ड होना-रहना स्पष्ट है।