मानवीय संविधान
by A Nagraj
Page 14
- मनाकार को साकार करने वाला, मन:स्वस्थता के लिए आशावादी व प्रमाणित करने वाला।
- जड़-चैतन्य का संयुक्त साकार रूप।
- अस्तित्व, विकास, जीवन, जीवन जागृति, रासायनिक और भौतिक रचना-विचरना का दृष्टा एवं जागृति सहज प्रमाण।
- मूल्य
- मौलिकता (मानव में ही प्रगट होना आवश्यक)।
- प्रत्येक इकाई में निहित मौलिकता। (मानव ही पहचानता है)।
- जीवन मूल्य, मानव मूल्य, स्थापित मूल्य, शिष्ट मूल्य, वस्तु मूल्य (30 कुल मूल्य)। उपयोगिता एवं कला की सिद्ध मात्रा = उत्पादित वस्तु मूल्य, स्थापित संबंधों में निहित स्थापित मूल्य, जिसका अनुभव में, से, के लिए अभिव्यक्ति सम्प्रेषणा से प्रकाशित होने वाला शिष्ट मूल्य।
- मानवीय आचरण
- स्वधन, स्वनारी-स्वपुरुष, दयापूर्ण कार्य-व्यवहार विन्यास।
- संबंधों की पहचान, मूल्यों का निर्वाह मूल्यांकन एवं उभयतृप्ति।
- तन, मन, धन रूपी अर्थ की सुरक्षा और सदुपयोग।
- मूल्य, चरित्र, नैतिकता का अविभाज्य वर्तमान रूप में किया गया संपूर्ण कार्य, व्यवहार, विचार विन्यास।
- मानवीय मूल्य = जीवन मूल्य, मानव मूल्य, स्थापित मूल्य, शिष्ट मूल्य।
- राज्य - परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था में भागीदारी
- सहअस्तित्व सहज मानवत्व सहित व्यवस्था में वैभव।
- मानव परंपरा में परिवार मूलक स्वराज्य, स्वानुशासन रूपी स्वतंत्रता सहज वैभव परंपरा।
- राष्ट्र
- दृष्टापद सहज जागृति पूर्ण मानव परंपरा ही अखण्ड राष्ट्र चेतना, व्यवस्था सहज प्रमाण।
मानवीय आचार संहिता रूपी संविधान का प्रभाव सहज आचरण परंपरा। धरती अखण्ड होना-रहना स्पष्ट है।