मानवीय संविधान
by A Nagraj
(प्रतीकमुद्रा - स्वयं में वस्तु का प्रतीक होता है। सिद्ध है कि प्रतीक प्राप्ति नहीं है।)
आवश्यकता का निश्चयन :- समझदार मानव परिवार में ही स्पष्ट होता है।
7.3 (1) उत्पादन-कार्य व्यवस्था
- उत्पादन कार्य सहज क्रियाकलाप, जागृत मानव परंपरा में, से, के लिए निपुणता, कुशलता, पांडित्य पूर्वक प्राकृतिक ऐश्वर्य पर श्रम नियोजन सहज सामान्य व महत्वाकाँक्षा संबंधी वस्तुओं, उपकरणों उपयोगिता व कला मूल्य को प्रमाणित करने के रूप में पहचान होता है।
सामान्य आकाँक्षा संबंधी वस्तुओं की आहार, आवास, अलंकार संबंधी वस्तुओं के रूप में पहचान है। कृषि व पशु पालन के लिये आवश्यकीय उपकरणों को अधिकतर कृषक अपने हाथों, पड़ोसियों की सहायता से सम्पन्न कर लेते हैं। यह क्रियाकलाप बैल से हल जोतने के समय तक सम्पन्न होता हुआ स्पष्ट है।
जब से ट्रैक्टर से जोत शुरु हुआ है तब से कृषि औजार प्रौद्योगिकीय विधि से तैयार होने लगा, तब उपकरणों के लिए बाजार का आश्रय लेना शुरू किया। यह शनै: शनै: महंगा होता जा रहा है। जिस अनुपात में प्रौद्योगिकीय उपकरणों का दाम बढ़ता जा रहा है उस अनुपात में कृषि उपज का दाम नहीं बढ़ पाया है।
सन् 2000 तक जो परिस्थितियाँ सुविधायें व गति के साथ अर्थात् जल्दी-ज्यादा के अर्थ में मानव प्रवृत्ति उलझने लगा। इसी के साथ पशुपालन विधि से ही रसायन-खाद एवं कीटनाशक दवाइयों से मुक्ति पाना आवश्यक है।
- निपुणता, कुशलता, पांडित्य सम्पन्नता सहित श्रम नियोजन के फलन में सामान्य व महत्वाकाँक्षा संबंधी वस्तु व उपकरणों का उत्पादन होना स्पष्ट है। यह मानव की परिभाषा में, से, के लिये मनाकार को साकार करने के सौभाग्य का फलन है, जो सुविधा-संग्रह जैसी प्रवृत्ति रहने के साथ भी सुलभ हुआ है। मनस्वस्थता: सर्वतोमुखी समाधान सर्व सुलभ होने के रूप में मानवीय शिक्षा-संस्कार चेतना विकास मूल्य शिक्षा रूप में सार्वभौम है।
मानवीय शिक्षा का फलन ही मानवीय आचार संहिता रूपी संविधान-व्यवस्था व आचरण-मूल्यांकन परंपरा ही अखण्ड समाज सूत्र सहित व्याख्या में पारंगत होना