मानवीय संविधान
by A Nagraj
Page 110
- मानवीय शिक्षा का प्रयोजन संस्कार मानवीयता में, से, के लिए स्वीकृति को कार्य-व्यवहार में, कार्य-व्यवहार सामाजिक अखण्डता व सार्वभौम व्यवस्था के रूप में प्रमाणित होता है। यह दायित्व हर सदस्यों में समान रहेगा, यही सर्वशुभ है। यही न्याय है।
- ज्ञान-विवेक-विज्ञान संपन्नता ही स्वत्व, व्यवहार में प्रमाण है। यह न्याय है।
- ज्ञान-विवेक-विज्ञान पूर्वक दायित्वों की स्वीकृति निश्चय निर्वाह करने में स्वतंत्रता (स्वयं स्फूर्त होना), दायित्व के साथ कर्त्तव्यों का निर्वाह करना न्याय है।
दायित्व
ग्राम-मोहल्ला परिवार सभा प्रधानत: पाँच विधाओं में प्रमाणित होना प्रमाण वैभव है। यह न्याय है। अन्य सभी विधायें इनमें समायी रहती हैं। यह न्याय है।
- मानवीय शिक्षा-संस्कार ग्राम मोहल्ला वासियों को सुलभ हो सके, यह न्याय है।
- मानवीय शिक्षा-संस्कार पूर्वक हर मानव सन्तान का स्वयं में विश्वास, श्रेष्ठता का सम्मान, प्रतिभा और व्यक्तित्व में संतुलन, व्यवहार में सामाजिक, उत्पादन में स्वावलंबी होना न्याय है।
- मानवीयतापूर्ण आचरण में पारंगत होना न्याय है।
- सहअस्तित्व रूपी अस्तित्व दर्शन ज्ञान में पारंगत होना न्याय है।
- जीवन सहज क्रियायें जागृति पूर्वक प्रमाणित होना न्याय है।
- भौतिक क्रियाकलाप में पारंगत होना न्याय है।
- रासायनिक क्रियाकलाप में पारंगत होना न्याय है।
- व्यापक वस्तु (सत्ता) में सम्पूर्ण ग्रह गोल, सौर-व्यूह, ग्रह-व्यूह, आकाश-गंगा, चारों अवस्था, चारों पद सम्पृक्त अविभाज्य है - में पारंगत होना न्याय है।
ज्ञानावस्था में मानवीय शिक्षा-संस्कार सम्पन्न मानव को, जीवावस्था में जीने की आशा सम्पन्न जीवों को, प्राणावस्था में रसायन उर्मी, पुष्टि एवं रचना तत्व सहित प्राण कोषाओं से रचित रचना में पौधों के रूप में कार्य-विधियों को, यौगिक विधि से प्रकट रसायन द्रव्यों को, इनके ठोस-तरल-विरलता को, पदार्थावस्था में मृत-पाषाण