मानवीय संविधान

by A Nagraj

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  • हर परिवार अपने सन्तान को आत्मनिर्भर सम्पन्न होने के लिए पोषण-संरक्षण पूर्वक अनुभवगामी प्रेरणा स्रोत है। यह आत्मनिर्भरता न्याय है।
  • आत्मनिर्भरता पूर्वक ही हर नर-नारी मानवीयता पूर्ण आचरण करते हैं। यह आत्मनिर्भरता समाधान व न्याय है।
  • शिक्षा-संस्कार, न्याय-सुरक्षा, उत्पादन-कार्य, विनिमय-कोष, स्वास्थ्य-संयम कार्यों को प्रमाणित करना आत्मनिर्भरता न्याय है।
  • अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी करना सर्वतोमुखी समाधान आत्मनिर्भरता न्याय है।

7.2 (13) शिक्षा-संस्कार में न्याय

शिक्षा :- शिष्टता पूर्ण दृष्टि का उदय होना।

शिष्टतापूर्ण दृष्टि :- अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन रूपी दृष्टि दृष्टा पद प्रतिष्ठा में पारंगत क्रियाशील रहना।

संस्कार :- ज्ञान, विवेक, विज्ञान सहज स्वीकृति, अनुभव प्रमाण परंपरा, जिसका प्रमाण ही अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था सूत्र व्याख्या में पारंगत होना प्रमाण परंपरा है।

परंपरा :- परंपरा में मानव सहज मानवीयता पीढ़ी से पीढ़ी में अन्तरित होना न्याय है।

मानवीयता :- मूल्य, चरित्र, नैतिकता सहज संयुक्त अभिव्यक्ति, सम्प्रेषणा, प्रकाशन परंपरा होना न्याय है।

  • शिक्षा में मानव का अध्ययन सम्पन्न होना न्याय है।
  • भौतिक-रासायनिक और जीवन वस्तु का अध्ययन होना न्याय है।
  • सहअस्तित्व में अध्ययन न्याय है।
  • हर मानव में, से, के लिये आत्मनिर्भर होने योग्य शिक्षा सर्वसुलभ होना न्याय है।
  • शिक्षा-संस्कार में मानव लक्ष्य, जीवन मूल्य, स्थापित मूल्य, शिष्ट मूल्य व वस्तु मूल्य बोध होना न्याय है।
  • मानव संस्कृति-सभ्यता, विधि-व्यवस्था बोध होना न्याय है।

7.2 (14) परिवार में न्याय