मानवीय संविधान

by A Nagraj

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  • श्रमशीलता को निपुणता-कुशलता-पांडित्य के रूप में स्वीकार करना न्याय है।
  • निपुणता-कुशलता पूर्वक श्रम नियोजन की स्वीकृति पाण्डित्य सहज विधि से मूल्यांकन करना न्याय है।
  • पांडित्य पूर्वक किया गया मूल्यांकन होने की स्वीकृति व प्रक्रिया न्याय है।
  • मूल्यांकन पूर्वक समाधानित रहने का प्रमाण न्याय है।
  • सामान्य आकाँक्षा संबंधी वस्तुओं को आवश्यकता से अधिक पाकर समृद्धि का, महत्वाकाँक्षा संबंधी वस्तुओं को आवश्यकता के अनुरूप पाकर समाज गति में सदुपयोग सहज प्रमाण रूप में सत्यापन करना न्याय है।

7.2 (12) स्वावलंबन आत्मनिर्भरता (समाधान) में न्याय

  • हर मानव जागृत परंपरा में अनुभव व अनुभव सहज प्रमाण क्रिया के रूप में प्रतिष्ठा है।
  • अनुभव ही प्रमाण परम है। यही समाधान है।
  • अनुभव मूलक विधि से ही आत्मनिर्भरता सहज सूत्र व्यवस्था स्पष्ट है।
  • सहअस्तित्व में अनुभव होना जागृत मानव परंपरा में समाधान वैभव है।
  • अनुभव पूर्वक ही हर नर-नारी समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, भागीदारी करना प्रमाण है। यही आत्मनिर्भरता है। यही न्याय है।
  • समझदारी के आधार पर विवेक सम्मत विज्ञान, विज्ञान सम्मत विवेक पूर्वक हर नर-नारी समाधान सम्पन्न होते हैं। तभी उत्पादन से स्वावलम्बन न्याय है।
  • समाधान पूर्वक ही हर आयाम, कोण, दिशा, परिप्रेक्ष्य में सफलता सहित निर्णय लिया जाता है। यह आत्मनिर्भरता न्याय है।
  • सहअस्तित्व, समृद्धि, अभयता पूर्वक जीने के लिये समाधान पूर्वक निर्णय लिया जाता है। यह आत्मनिर्भरता न्याय है।

परिवार व्यवस्था में जीने के लिए हर नर-नारी समाधान पूर्वक निर्णय लेना सहज है। यह आत्मनिर्भरता न्याय है।