सत्यापित |
satyapit |
184 |
- अनुभवमूलक विधि अभिव्यक्त होना, प्रमाणित अथवा प्रमाण स्पष्ट होना। प्रमाण पूर्वक जीने की घोषणा।
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सत्योन्मुखी |
satyonmukhi |
184 |
- अनुभवगामी दिशा में अध्ययन गति।
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सदुपयोग |
sadupyog |
184 |
- समाज गति में नियोजन।
- तन, मन, धन रूपी अर्थ का मानवीय संबंधों एवं मूल्यों में, से, के लिए अर्पण समर्पण क्रिया।
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सदुपयोग विधि |
sadupyog vidhi |
184 |
- अखण्ड समाज गति में प्रयुक्ति नियोजन।
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सदोष विचार |
Sadosh vichar |
184 |
- पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय जीवन में क्लेश, कलह व आतंक उत्पन्न करने वाली समस्त प्रवृत्ति सदोष विचार है।
- अवसरवादी विचार।
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सद्गति |
sadgati |
185 |
- जागृति सहित मानवीय लक्ष्य संपन्नता की ओर स्थिति गति।
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सद्ग्रंथ |
sadgranth |
185 |
- अनुगामी स्वीकारने सार्थकता स्पष्ट होने में अध्ययन के लिए प्रस्तुत ग्रंथ।
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सद्प्रवृत्ति |
sadpravritti |
185 |
- सत्य में अनुभव मूलक प्रवृत्ति प्रमाण।
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सद्बुद्धि |
sadbuddhi |
185 |
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सद्मार्ग |
sadmarg |
185 |
- जागृति सहज मानव लक्ष्य प्रमाणित करने में परंपरा।
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सद्विचार |
sadvichar |
185 |
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सद्विवेक |
sadvivek |
185 |
- स्वयं में सत्यता की विवेचना ही सद्विवेक है।
- अवधारणा ही सद्विवेक है।
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सद्व्यय |
sadvyay |
185 |
- मानवीयतापूर्ण पद्धति से किया गया उपयोग, सदुपयोग और प्रयोजन के अर्थ में वितरण।
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सन्यास |
sanyas |
185 |
- स्वअस्तित्व अभिमान से मुक्ति सहज प्रमाण।
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सन्निकर्षात्मक क्रिया |
sannikarshatmak kriya |
185 |
- संयोग होने के उपरान्त, संयोग के अर्थ को साक्षात्कार करने की क्रिया।
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सन्निहित |
sannihit |
185 |
- पूर्णता के अर्थ में समाविष्ट।
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सप्राण |
sapran |
185 |
- श्वास लेना-छोड़ना, स्पंदनशील रहना।
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सप्राण कोशिका |
sapran koshika |
185 |
- प्राण कोशिकाओं से रचित रचनायें।
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सप्त धातु |
sapta dhatu |
185 |
- रस, मांस, मज्जा, अस्थि, स्नायु, रक्त, वसा - मानव शरीर रचना में सात प्रकार के धातुयें होना पाया जाता है।
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सफल |
saphal |
185 |
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