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व्यक्ति vyakti 178
  • व्यक्तित्व सहित मनुष्य।
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व्यक्तित्व vyaktitva 178
  • मानवीयता पूर्ण आचरण पोषण में सहायक आहार, विहार, व्यवहार सहित व्यवस्था में भागीदारी।
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व्यवधान vyavadhan 178
  • व्यक्तित्व विकास व जागृति में बाधा।
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व्यवसाय vyavasay 178
  • उत्पादन कार्य व्यवहारिक उपयोगिता सदुपयोगिता प्रयोजनीयता के अर्थ में।
  • निपुणता, कुशलता पूर्वक प्राकृतिक ऐश्वर्य पर उपयोगिता एवं कला मूल्य की स्थापना।
  • प्रयोग सिद्ध प्रक्रिया का व्यवहारीकरण जिसमें सामान्य आकांक्षा एवं महत्वकांक्षा संबंधी वस्तुओं का निर्माण।
  • उत्पादन विनिमय व सेवा।
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व्यवसाय मूल्य vyavasay mulya 179
  • उपयोगिता एवं कला।
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व्यवस्था vyavastha 179
  • मानवत्व सहित वर्तमान परंपरा, वर्तमान में स्थिरता निश्चयता निरंतरता, सार्वभौम व्यवस्था परिवार मूलक दश सोपानीय व्यवस्था में भागीदारी, वर्तमान में विश्वास।
  • मानवीय आचरण, संस्कृति एवं सभ्यता पूर्ण व्यवहार परंपरा वर्तमान में होना रहना।
  • विधि के आशय को कार्यरूप में प्रदान करने हेतु प्रस्तुत परम्परा ही व्यवस्था है।
  • व्यवहार गति में स्थायित्व, निरंतरता और वर्तमान में विश्वास।
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व्यवस्थागत vyavasthagat 179
  • व्यवस्था व्यवहार सुलभ होने के रूप में व्यवस्था मर्यादा में, व्यवस्थापूर्वक नियम, नियंत्रण, संतुलन रूप में।
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व्यवस्था भेद vyavastha bhed 179
  • दश सोपानीय विधि सहज।
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व्यवहार vyavahar 179
  • ज्ञान, विवेक, विज्ञान रुपी समझदारी सहज प्रमाण।
  • मनुष्य की परस्परता में निहित मूल्यों का निर्वाह।
  • एक से अधिक एकत्रित होने पर या होने के लिए किया गया आदान-प्रदान । स्थापित सम्बन्धों में निहित स्थापित मूल्यों के अनुभव सहित शिष्टतापूर्ण पद्धति से व्यवसाय मूल्य का उत्पादन, उपयोग, उपभोग एवं वितरण।
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व्यवहारिक सुगमता vyavaharik sugamata 179
  • न्यायपूर्ण जीवन का संरक्षण।
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व्यवहारगम्य vyavahargamya 179
  • व्यवहार में प्रमाणित होने वाले सूत्र व्याख्या व्यवहारिक सुगमता, अखण्ड समाज सर्वाभौम व्यवस्था सूत्र व्याख्या सहज परंपरा।
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व्यवहारवादी जन चेतना vyavaharvadi jan chetna 180
  • मूल्य मूलक, लक्ष्य मूलक, जीने का महत्व, मूल्यों का मूल्यांकन करने सम्बन्धों को पहचानने और निर्वाह करने, मानवीय संस्कार, मानवीय व्यवहार पूर्वक जीने, मानवीय आचरण में जीने, परिवार मूलक राज्य व्यवस्था में जीने, आवश्यकता से अधिक उत्पादन संयम पूर्ण विधि से स्वास्थ्य को बनाए रखने, श्रम नियोजन श्रम विमिनय के आधार पर विनिमय कोष व्यवस्था पूर्वक जीने, न्याय-प्रदायी क्षमता सम्पन्नता पूर्वक जीने, सही रूप में उत्पादन कार्य करते हुए जीने, नियम न्याय समाधान समृद्धि प्रामाणिकता पूर्ण पद्धति, प्रणाली, नीति पूर्वक जीने की कला का वर्तमान और उसकी निरतंरता।
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व्यवहारात्मक जनवाद vyavaharatmak janvaad 180
  • मानव अपने परस्परता में व्यवहार न्याय प्रमाणित करने के लिए चर्चा, परिचर्चा प्रमाणात्मक प्रस्तावात्मक वार्तालाप।
  • अस्तित्व में प्रत्येक व्यक्ति को द़ृष्टापद में पहचानने, प्रत्येक व्यक्ति में समाधान, समृद्धि, अभय, सह अस्तित्व की अपरिहार्यता को पहचानने, प्रत्येक व्यक्ति को स्वराज्य और स्वतंत्रता की परमावस्था को पहचानने, प्रत्येक व्यक्ति को न्याय सुलभता, उत्पादन सुलभता, विनिमय सुलभता की अनिवार्यता को पहचानने प्रत्येक व्यक्ति को संबंधों व मूल्यों को पहचानने व निर्वाह करने की संभावना को पहचानने, प्रत्येक व्यक्ति को कर्म स्वतंत्रता, कल्पनाशीलता को पहचानने। एक व्यक्ति जो कुछ जानता है, करता है, पाता है उसे प्रत्येक व्यक्ति को जानने, करने ,पाने को पहचानने, प्रत्येक व्यक्ति में आवश्यकता से अधिक उत्पादन करने की क्षमता में समानता को पहचानने, प्रत्येक व्यक्ति अपने त्व सहित व्यवस्था है और समग्र व्यवस्था में भागीदार होने के रूप में समानता को पहचानने का सूत्र और व्याख्या।
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व्यवहारवादी समाजशास्त्र vyavaharvadi samajshastra 180
  • समाधान सत्य न्याय संगत व्यवहार सूत्र व्याख्या।
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व्यवहार विधि vyavahar vidhi 180
  • संबंधों के आधार पर मूल्यों का निर्वाह।
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व्यवहार व्यवस्था vyavahar vyavastha 180
  • सार्वभौम व्यवस्था।
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व्यवहार समुदायगत होना vyavahar samudaaygat hona 180
  • समस्या ग्रस्त होना।
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व्यवहाराभ्यास vyavaharabhyas 181
  • संबंधों में मानवीयतापूर्ण आचरण उपयोगिता पूरकता के अर्थ में मूल्यांकन निर्वाह।
  • व्यवहाराभ्यास अनुसरण, आचरण, संस्कृति, सभ्यता, विधि एवं व्यवस्था है, जिसकी चरितार्थता सामाजिकता, अखण्डता, निर्विषमता, अभयता, समाधान, संतुलन एवं स्वर्ग है।
  • व्यवहाराभ्यास पूर्वक सहअस्तित्व तथा बौद्धिक समाधान है।
  • इच्छाशक्ति सहज प्रकटन। शिष्ट मूल्यानुभूति।
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व्यवहारिकता vyavaharikata 181
  • अर्थ का सदुपयोग सुरक्षा।
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व्यवहृत vyavahrit 181
  • व्यवहार में प्रमाणित।
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