वैभवित |
vaibhavit |
177 |
- वर्तमानित, सार्थक, व्यवस्था सहज परम्परा।
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वैयक्तिक ऐश्वर्य |
vaiyaktik aishwarya |
177 |
- सर्वतोमुखी समाधान सामान्य कांक्षा, महत्वाकांक्षा संबंधी वस्तुऐं, उपयोगिता के लिए सुलभ रहना।
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वैयक्तिक प्रतिभा |
vaiyaktik pratibha |
177 |
- जागृत मानव, ज्ञान, विज्ञान, विवेक संपन्न प्रमाण मानव।
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वैराग्य |
vairagya |
177 |
- असंग्रह प्रवृत्ति से समृद्धि पूर्वक सदुपयोग प्रवृत्ति संपन्नता।
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वंचना |
vanchana |
177 |
- भ्रमवश विश्वासघात पूर्वक शोषण का रूप।
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वंदना |
vandana |
177 |
- गौरवता को व्यक्त करने हेतु प्रयुक्त चेष्ठा।
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वंश |
vansh |
177 |
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वंशानुषंगीय |
vanshanushangiya |
178 |
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वांछनीय |
vachhaniya |
178 |
- लक्ष्य पूर्ति के लिए आवश्यकीय सूत्र व्याख्या सहज प्रमाण ही सहायता।
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वांछा |
vanchha |
178 |
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वांछित |
vanchhita |
178 |
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वांछित लक्ष्य |
vanchhita lakshya |
178 |
- जीवन मूल्य, मानव लक्ष्य संपन्न परंपरा।
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वृत्ति |
vritti |
178 |
- चैतन्य इकाई में मध्यांश के आश्रित तृतीय परिवेशीय अंशों का प्रकटन जो विचार हैं।
- जीवन में होने वाली तुलन एवं विश्लेषणात्मक क्रिया।
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वृत्तिकृत |
vrittikrit |
178 |
- विश्लेषण पूर्ण अभिव्यक्ति।
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वृत्ति तत्वग्राही |
vritti tatvagrahi |
178 |
- तात्विकता का आंकलन विचारों में होना, स्वाभाविक फलन में कार्य व्यवहार चार अवस्था व पदों का तात्विक उपयोगिता व पूरकता के आधार पर अध्ययन होना।
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वृत्ति सहज न्याय |
vritti sahaj nyaay |
178 |
- जागृति विचारों के आधार पर न्याय करना संबंधों में, मानव परम्परा में नैसर्गिक में, मनुष्येतर प्रकृति में सन्तुलन।
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वृत्ति क्षोभ |
vritti kshobh |
178 |
- अनियमितता के आंकलन वश प्रिय हित लाभ को तत्कालिक राहत मान लेता है जब तक जीवन ज्ञान सहअस्तित्व में ना हो।
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वृत्ति सत्ता |
vritti satta |
178 |
- न्याय, धर्म, सत्य मूलक समाधान संपन्नता।
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वृहदत्व |
vrihadatva |
178 |
- धरती जैसी रचना (अति विशाल)
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व्यक्त |
vyakt |
178 |
- प्रकटन एवं वर्तमान मानव समझने योग्य, समझ में आने वाला समझा हुआ।
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