वासनाजित |
vasanajit |
167 |
- चार विषयों, पाँच संवेदनाओं में नियंत्रण अप्रवृत्त।
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वास्तविकता |
vastavikata |
167 |
- वस्तु अपने स्वरूप में वर्तमान। वस्तु का तात्पर्य वास्तविकता को व्यक्त करने से है।
- रूप, गुण सामरस्यता प्रकाशन और रूप, गुण, स्वभाव, धर्म का अविभाज्य वर्तमान क्रिया।
- जो जैसा है, वह उसकी वास्तविकता है।
- जो जिस पद में है वह उसकी वास्तविकता है।
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वाहक |
vahak |
167 |
- समझा हुआ को समझाने के कार्यक्रम में प्रमाणित रहना, पाया हुआ जाने हुआ का सदुपयोग सुरक्षा करना।
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वांछनीयता |
vanchhaniyata |
167 |
- विज्ञान विधि से सत्कार्य, सत्य सहज प्रयोजनों को पोषण और संरक्षण करने के लिए गति की आवश्यकता।
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वाणिज्य |
vanijya |
167 |
- उत्पादित वस्तुओं को श्रम, मूल्य, मूल्यांकन सहित दूसरों को उपलब्ध कराने वाले प्रयास की अथवा विनिमय क्रिया की वाणिज्य संज्ञा है।
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विकल्प |
vikalpa |
167 |
- हर समस्या का विकल्प समाधान समस्या के स्थान पर समाधान।
- अपरिपूर्ण अवधारणा को पूर्णता की ओर गति प्रदायी तथ्य।
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विकल्पात्मक दर्शन |
vikalpatmak darshan |
168 |
- मध्यस्थ दर्शन, सह अस्तित्ववाद।
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विकल्पात्मक प्रावधान |
vikalpatmak pravadhan |
168 |
- समस्या के स्थान पर समाधान, अभाव के स्थान पर भाव, अज्ञान के स्थान पर ज्ञान, अविवेक के स्थान पर विवेक, दुष्टता के स्थान पर शिष्टता, अव्यवस्था के स्थान पर व्यवस्था।
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विकसित इकाई |
viksit ikai |
168 |
- समाधान एवं समृद्धि सम्पन्न इकाई।
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विकसित देश |
viksit desh |
168 |
- समाधान सहित सामान्यकांक्षा महत्वाकांक्षा संबंधी वस्तुओं से भरपूर, होना, रहना।
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विकसित रचना |
viksit rachna |
168 |
- मानव शरीर रचना, रचनाओं में विकास का ज्ञान वनस्पति रचना से जीव शरीर रचना विकसित, जीव शरीर रचना से मनुष्य शरीर रचना विकसित।
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विकर्षण |
vikarshan |
168 |
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विकास |
vikas |
168 |
- जीवन पद में संक्रमित होना।
- परमाणु में गठन पूर्णता गठन पूर्णता और क्रिया पूर्णता, आचरण पूर्णता।
- गुणात्मक परिवर्तन अर्थात् पदार्थावस्था से प्राणावस्था, प्राणावस्था से जीवावस्था जीवावस्था से ज्ञानावस्था । ज्ञानावस्था में पाए जाने वाले पशु मनुष्य से राक्षस मनुष्य, राक्षस मनुष्य से मानव ,मानव से देवमानव, देवमानव से दिव्यमानव के रूप में |
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विकासक्रम |
vikaskram |
168 |
- भौतिक रासायनिक क्रियाकलाप।
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विकास एवं जागृति पूर्णता |
vikas evam jagriti purnata |
168 |
- जीवन पद, गठनपूर्णता, चैतन्य इकाई में क्रिया पूर्णता, आचरण पूर्णता।
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विकार |
vikar |
168 |
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विकिरण |
vikiran |
168 |
- अजीर्ण परमाणुओं का मध्यांश से प्रसारित वातावरण।
- इकाई में अंतर्निहित अग्नि का प्रभाव प्रसारण।
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विकिरणीयता |
vikiraniyata |
168 |
- अजीर्ण परमाणु अपने गठन में समाहित कुछ अंशो को बहिर्गत करने के प्रयास में रहते हैं ऐसे परमाणु विकिरणीय वैभव से सम्पन्न रहते हैं।
- अजीर्ण परमाणुओं में मध्याशों की ओर ताप का अन्त: नियोजन होता है। इसी क्रम में विद्युत भी बना रहता है। यही दोनों प्रक्रिया के फलस्वरूप विकिरणीयता प्रकट रहती है।
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विकिरणीय ऊर्जा |
vikiraniya urja |
169 |
- अजीर्ण परमाणुओं के मध्यांश से प्रसारित तरंग और उसकी गति।
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विकेन्द्रीकरण |
vikendrikaran |
169 |
- परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था।
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