अध्यात्मवाद
by A Nagraj
इसमें से कोई भी बिन्दु यंत्र प्रमाण से प्रमाणित नहीं हो पाती जबकि हर मानव इसको समझ सकता है और व्यवहार में प्रमाणित कर सकता है। आदर्शवाद, जिसका आधार आप्त पुरुषों के वचन हैं, के आधार पर भी ये बारह बिन्दुओं में से कोई भी बिन्दु अध्ययन, बोध और प्रमाणगम्य नहीं हो पाते।
इसलिये अनुभवमूलक जागृतिपूर्ण विधि से सभी दिशा, कोण, परिप्रेक्ष्य, आयामों में व्यवहार प्रमाण मानव कुल में अति आवश्यक है। अनुभव व्यवहार में प्रमाणित होना अपरिहार्य है और हर प्रयोग व्यवहार में सार्थक होना उतना ही अनिवार्य है। इस प्रकार अनुभवमूलक जागृति विधि पूर्ण प्रमाण सूत्रों पर आधारित विचारों और विचार सूत्रों पर आधारित संप्रेषणा और वाङ्गमय शैलियों से इंगित ‘वस्तु’ के रूप में अर्थों-प्रयोजनों के सार्थकता के रूप में व्यवहार, उत्पादन, व्यवहार-न्याय, व्यवहार और न्यायिक विनिमय, व्यवहारिक स्वास्थ्य-संयम और व्यवहारिक शिक्षा-संस्कार परंपरा की आवश्यकता है। और उसकी आपूर्ति ही स्वाभाविक रूप में अग्रिम पीढ़ियों के सहस्त्राबदियों तक इस धरती पर मानव परंपरा सहज वैभव और उसकी सार्थकता रूपी जागृति और व्यवस्था को प्रमाणित कर सकते हैं। यह हर व्यक्ति के लिये सहज सुलभ हो सकता है। सार्थक रूप में जीने की कला अर्थात् जीने की हर तरीकों का जागृतिसूत्र के अनुरूप मूल्यांकित होना संभव है। हर मानव में जागृति और मानवत्व प्रमाणित होने का अनुमान विद्यमान है ही।
मानवत्व के रूप में प्रमाणित होने के लिये मानवीयतापूर्ण स्वभाव यथा धीरता, वीरता, उदारता, दया, कृपा, करुणा सहज विधि से पुत्रेषणा, वित्तेषणा और लोकेषणा और जागृतिपूर्वक प्रमाणित होने में प्रवृत्ति सहित न्याय, धर्म, सत्य को प्रामाणिकता के रूप में प्रस्तुत करना/होना ही, मानवीयतापूर्ण मानव का स्वरूप है। दूसरे विधि से स्वायत्त मानव, परिवार मानव और अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी निर्वाह करता हुआ स्थिति में, गति में, मानवीयता का वैभव अखण्ड, सार्वभौम, अक्षुण्ण प्रतिष्ठा के रूप में देखने को मिलता है। तीसरे विधि में मानवीयतापूर्ण मानव मानव का परिभाषा सहज सार्थकता को प्रमाणित करने वाला है। यह समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व के रूप में प्रमाणित करना होता है क्योंकि मानव का परिभाषा “मनाकार को साकार करने वाला मनःस्वस्थता का