अध्यात्मवाद
by A Nagraj
आवश्यकता, स्त्रोत की क्षीणता, धरती का शक्ल बिगाड़ना, पानी का संकट, सामान्य सुविधाएं सर्वदेश सभी लोगों के लिए सुलभ नहीं हो पाना, शोषण का अनुपात बढ़ते जाना, मानव-मानव का शोषण, प्राकृतिक संपदाओं का शोषण, बिगड़ा हुआ पर्यावरण और बिगड़ने की संभावना बढ़ते जा रही है। फलस्वरूप विविध प्रकार से सभी लोग कुण्ठाग्रसित रहते हैं।
शिक्षा की विडम्बना यही है कि विज्ञान विधा से, विशेषज्ञता से प्रभावित है। विशेषज्ञता किसी विधा के किसी अंश में अपने को प्रतिष्ठित करने के प्रत्यत्नों में कार्यरत होना पाया जाता है। पुन: उसका अंश और उसके अंश के रूप में प्रयासों का उदय देखने को मिल रहा है। फलस्वरूप विशेषज्ञता प्रयोजनविहीन काला-दीवाल के सम्मुख सभी विधाओं में आ चुके हैं। जैसे - मात्रा विज्ञान अस्थिरता-अनिश्चयता के काला दीवाल के सम्मुख है। इसके विशेषज्ञ अपना मूल्यांकन करने में निरीह देखा गया है। दूसरा वंशानुषंगीय विज्ञान यह मानव को अध्ययन कराने में विश्लेषित करने में सर्वथा असमर्थ होकर काला दीवाल के सम्मुख होना देखा गया। तीसरा सापेक्षवाद अपने कल्पना को अज्ञात घटना के साथ वर्णित करने के रूप में विशेषज्ञों को देखा गया है। इन तीनों विधा के लिये अथवा इन विधाओं को पहचानने के लिये ऊर्जा की आवश्यकता को विज्ञान संसार में स्वीकारा गया है। यह अपने से गति ऊर्जा कहना आरम्भ करते हैं यथा चुम्बकीय धारा को विद्युत गति के रूप में परिणत करना इस गति को और गति विधा में चलकर तरंग का नाम लेते हैं। ऐसी तरंग वस्तु है या अवस्तु है इस तथ्य को उद्घाटित करने के लिये अभी भी प्रयोग करते जा रहे हैं। जो प्रयोग परिणीतियाँ आती है उसे अंतिम सत्य नहीं मानते हुए प्रयोगों के लिए मार्ग प्रशस्त किये रहते हैं। इस विधा में अनिश्चयता बनी ही है - वस्तु है या अवस्तु है।
इसी अनिश्चयता के स्थिति पर मानव अपने को समझा हूँ, नहीं समझा हूँ इस बात को लेकर कुंठित हो चुके हैं। इन्हीं सिद्धांतों के शाखा-प्रशाखा होने के कारण और अलग-अलग से समीक्षीत करने की आवश्यकता नहीं है। अतएव विज्ञान संसार में लगे हुए जितने भी मानव हैं वे अपने को समझदार सत्यापित करने में असमर्थ हैं क्योंकि विशेषज्ञता का चक्कर विचार के शुरुआत से काला दीवाल तक चलता है।