अध्यात्मवाद
by A Nagraj
दूसरी ओर शिक्षा के कला पक्ष के विशेषज्ञ कहलाने वाले, विविध समुदाय में पनपी हुई रुढ़ी-आदतों को शादी-विवाह, नाच-गाना, उत्सवों को मनाने के तरीकों को संस्कृति मानते हुए समाजशास्त्र के नाम से पढ़ाया करते हैं। वे विशेषज्ञ जिसको पढ़ाते हैं उसमें विश्वास नहीं रखते हैं। उससे भिन्न रुढ़ी, भिन्न आदतों के साथ भिन्न मानसिकता को बनाए रखते हुए दिखते हैं। अंतिम बात वर्तमान समाज एक संघर्षशील मानव समुदाय है। संघर्ष का आधार व्यक्ति-व्यक्ति में मानसिक मतभेद रूढ़ी-रूढ़ी के बीच आलोचना, नशा-पानी, नाच-गाने में विविधता, प्रतिस्पर्धा के रूप में होना देखा गया है। इसी प्रकार खेल-कूद, भाषण-प्रतियोगिताएँ-प्रतिस्पर्धा के आधार पर पहचानने की पंरपरा अभी तक है। प्रतिस्पर्धाएँ विरोध, द्वेष जैसी संकटों को झेलता हुआ घटना होना देखा गया है। धर्म और राज्य में संघर्ष है ही और यह भी कलात्मक शिक्षा प्रणाली पद्धति में गण्य है। इसका समीक्षा यही है विज्ञान विधा से यंत्र प्रमाण के आधार पर अनिश्चियता-अस्थिरता का काला दीवाल और कलात्मक शिक्षा विधा से विरोध, विद्रोह-द्वेष जैसी अवांछनीय काला दीवालें अथवा स्वीकृतियाँ मानव परंपरा को भ्रमित करने का आधार सूत्र के रूप में बनी। सारे लोग प्रयत्न करते हुए भी सही मार्ग प्रशस्त नहीं हुआ। अतएव अनुभवमूलक व्यवहार प्रमाण प्रस्ताव का अनिवार्यता बना ही रहा। इसलिये अभी प्रस्तावित होकर मानव स्वीकृत होना संभव हो गया।
यह प्रस्ताव मूलत: समानता के आधार पर प्रस्तुत है। समानता, निश्चयता और स्थिरता का प्रमाण है।
स्थिरता और निश्चयता का स्वरूपों को अध्ययन करने के लिये (1) अस्तित्व (2) परमाणु में विकास (3) परमाणु ही व्यवस्था का आधार (4) सहअस्तित्व में व्यवस्था (5) व्यवस्था सूत्र (“त्व” सहित व्यवस्था) (6) पूरकता-उदात्तीकरण, रचना-विरचना (7) पूरकता-उदात्तीकरण और संक्रमण (8) परमाणु ही गठनपूर्णतापूर्वक जीवन पद (चैतन्य पद) में वैभवित होना (9) जीवन में जीवनी क्रम (10) बंधन सहित जीवन का कार्यक्रम और जागृतिक्रम (11) जीवन ही जागृति पूर्वक क्रियापूर्णता में संक्रमण (12) जीवन ही जागृतिपूर्णता पूर्वक आचरणपूर्णता में संक्रमण, प्रधान बिन्दु है।