अध्यात्मवाद
by A Nagraj
में संभव होता है। अनुभवमूलक विधि से किया गया कार्य-व्यवहार, विचार, अर्पण-समर्पण, संबंध-मूल्य-मूल्यांकन-उभयतृप्ति, परिवार सहज आवश्यकता से अधिक उत्पादन, लाभ-हानि मुक्त विनिमय, प्रामाणिकता पूर्ण प्रबोधन (समझे हुए को समझाने, किये हुए को कराने, सीखे हुए को सिखाने) से ही ये सब सकारात्मक उपलब्धियाँ मानव परंपरा में सहज-सुलभ होना पाया जाता है। यह सम्पूर्ण वैभव मानव परंपरा में अनुभवात्मक अभिव्यक्ति एवं मानसिकताएँ है।
आदर्शवाद और भौतिकवाद के स्थान पर अस्तित्वमूलक मानव केन्द्रित चिन्तन बनाम मध्यस्थ दर्शन, सहअस्तित्ववाद क्रम में ऊपर कहे गये सभी सकारात्मक पक्षों का सहज समाधान और उसकी निरंतरता की समीचीनता प्रस्तावित रहता ही है। यही अनुभवात्मक आदर्शवादिता का ‘पूरक गुण’ होना देखा गया।
मूलत: अनुभव अनुक्रम से ही होता है मानव कुल में जीवन जागृति सहज विधि से सभी सकारात्मक पक्ष प्रमाणित होना देखा गया है। इसके विपरीत भ्रमबंधन वश ही अर्थात् भ्रम में ग्रसित मानसिकता वश ही मानव अनेक समुदाय, राज्य, धर्म, जाति, पंथ, सम्प्रदाय, धन, पद और सामारिक बल के आधार पर अपने को विकसित-अविकसित भी मान लेते हैं, कह लेते हैं। प्रयोजन के रूप में कुछ भी नहीं निकलता है। यथा सहअस्तित्व, समाधान, अभय, समृद्धि मानव कुल में प्रमाणित नहीं हो पायी। इससे यह स्पष्ट हो गई कि जागृति में मानव मानसिकताएँ सकारात्मक, अमानवीयता में नकारात्मक पक्षों में कार्य करता है। नकारात्मक कार्य में भ्रमवश अनर्थ एवं सकारात्मक पक्ष में जागृतिपूर्णता पूर्वक सार्थक होना, मूल्यांकित होना, समीक्षित होना, फलित होना देखा जाता है।
भ्रमित परंपरा में ही शक्ति केन्द्रित शासन मानसिकता स्पष्ट हो चुकी है। यह भी साथ में झलक मिल चुकी है कि समाधान केन्द्रित परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था ही सर्वशुभ कार्यक्रम हैं।
इस दशक तक अधिकारों की होड़ रही है। अधिकार सर्वप्रथम शासन और शासन के स्वरूप में भागीदारी की मानसिकता पर आधारित होना स्पष्ट है। शासन मानसिकता स्वयं भ्रमित होने के आधार पर भागीदारी की तैयारी भ्रम ही होना, भ्रमवश ही होना, भ्रमित अपेक्षाओं के साथ ही होना पाया जाता है। सुविधा संग्रह के