अध्यात्मवाद
by A Nagraj
हुई। इससे राहत दिलाने के लिये राजा और गुरू आश्वासन दिये, इसके लिये लोक सम्मति मिली। इसका गवाही है - राजा और गुरू स्थापित हुए। अभी तक राजगद्दी और धर्मगद्दी का वैभव होना देखने को मिलता ही है। इससे मुख्य रूप में उल्लेखनीय स्मरणीय तथ्य यही है कि आम मारपीट को रोकने के लिये उससे ज्यादा अर्थात् आम लोगों में जो मार-पीट का तौर तरीका था, उससे ज्यादा प्रभावशाली तौर-तरीके को अपनाते हुए प्रयास किये। इस चित्रण से यही समझ में आता है कि मार-पीट को मारपीट से रोकना जरूरी समझा गया। आज के संविधान में भी यही ध्वनित होता है। जबकि मारपीट से पुन: मारपीट ही हाथ आता रहा, युद्ध के अनंतर पुन: युद्ध की तैयारी होता ही आया। इस विधि से शांति का कोई रास्ता मिला नहीं। इसी के साथ हर धर्म गद्दी शांति के समर्थक रहा है, अभी भी है। इसके बावजूद धर्म में अपना पराया, राज्य में अपना पराया मानसिकता पनपता रहा। इसी से पता लगता है इन दोनों के अथक प्रयासों में अंतरर्विरोध पनपती रही। बाह्य विरोध तो रहा ही। राज्य परंपरा में करने में और होने में दूरी होती रही है। धर्म गद्दी में कहने-होने में दूरी रहे आयी। यही मानव समुदायों में अन्तर्विरोध का कारण रहा। बाह्य विरोध अपना-पराया के रूप में रहा ही। इस प्रकार धर्म और राज्य के मूल में मानसिकता का स्वरूप स्पष्ट है।
मानव परंपरा में यह विदित है कि मानव क्रियाकलाप के मूल में मानसिकता का रहना अत्यावश्यक है। मानसिकता विहीन मानव को मृतक या बेहोश घोषित किया जाता है। विकृत मानसिकता (मान्य, सामान्य मानसिकता के विपरीत) वाले मानव को पागल, असंतुलित अथवा रोगी के नाम से घोषणा की जाती है। यह सभी क्रियाकलाप वांछित, इच्छित और आवश्यकीय मानसिकता हर क्षण, हर पल, हर दिन शरीर यात्रा पर्यन्त प्रभावित होने के क्रम में ही राज्य मानसिकता, धर्म मानसिकता, व्यापार मानसिकता, अधिकार मानसिकता, भोग मानसिकता, सुविधा-संग्रह मानसिकता समीक्षित होता है। न्याय मानसिकता, धर्म (समाधान) मानसिकता, नियम मानसिकता, प्रामाणिकता पूर्ण मानसिकता, समृद्धि मानसिकता, सहअस्तित्व मानसिकता, वर्तमान में विश्वास मानसिकता, परिवार मानसिकता, स्वायत्त मानसिकता, समाज मानसिकता, व्यवस्था मानसिकता, मानवीय शिक्षा-संस्कार मानसिकता, स्वास्थ्य संयम मानसिकता का मूल्यांकन किया जाना जागृत परंपरा