अध्यात्मवाद

by A Nagraj

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प्रयोजन और प्रयोजनशील बनाने के प्रमाणों के साथ ही भ्रम विलय हो जाते हैं। धर्म गद्दी, राज गद्दी, व्यापार गद्दी और शिक्षा गद्दी जो अपने हठधर्मितावश मानव को पापी-अज्ञानी-मूर्ख, पिछड़ा, दलित दुखी रहना मानते हुए अपने अहमता, अहंकार को बढ़ाये रहते हैं। जागृत परंपरा सहज विधि से स्वायत्तता का प्रमाण, परिवार मानव सहज प्रमाण और परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था प्रमाण समाधान समृद्धि सहित प्रमाण के साथ ही ये सब हठधर्मिताएँ विलय हो जाते हैं। साथ ही इस जागृति का प्रमाण में अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था प्रमाणित होना स्वाभाविक होने के कारण सभी समुदायवादी एवं व्यक्तिवादी अस्मितायें अपने आप विलय को प्राप्त करेगें। भ्रमवश ही मानव परंपरा में विभिन्न समुदाय और उसकी अस्मितावश द्रोह-विद्रोह-शोषण और युद्ध को एक आवश्यकता मानते हुए छल, कपट, दंभ और पाखण्ड का वशीभूत हो गया है, ये सब तभी विलय हो जाते हैं जिस मूहुर्त में इस धरती पर परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था जागृति के साथ स्थापित हो जाता है। इसी के साथ अखण्ड समाज का सहज रूप सर्वविदित और प्रमाणित हो जाता है।

हठधर्मिता जो व्यक्तिवादी (अहमतावादी) मानसिकता के लिये जिम्मेदार है उसके मूल में समाज विरोधी सूत्र सदा ही पनपते आई है। क्योंकि समाज, व्यवस्था और समग्र व्यवस्था जो अस्तित्व सहज है, इसे स्पष्टतया समझने के स्थिति में हम यह पाते हैं कि यह अस्तित्व सहज सहअस्तित्व सूत्र ही है। सहअस्तित्व सूत्र के आधार पर ही अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था हमें विदित हुआ है। इस तथ्य के आधार पर मानव जब तक जागृतिपूर्ण होता है तब तक भले ही ऊपर कहे हुए वितण्डावाद रहे आये। जैसे ही अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था परंपरा में प्रमाणित होते हैं, व्यक्तिवादी अहमताएँ अपने आप ही विलय को प्राप्त करते हैं।

व्यक्तिवादी अहमता को शक्ति केन्द्रित शासन, उसमें अधिकारों को वर्तने के लिये प्रावधानित अधिकारों को प्रयोग करता हुआ, जितने भी विसंगतियाँ अधिकारी मानस और जनमानस के बीच दूरी तैयार होती जाती है, यह सब समस्या का ही ताण्डव है। समस्या में ग्रसित होने के फलस्वरूप या विवश होने के फलस्वरूप ही व्यक्तिवादी होना पाया जाता है। जैसे - अधिकारवाद, भोगवाद, भक्तिवाद और