अध्यात्मवाद
by A Nagraj
Page 129
गया है। यहाँ उल्लेखनीय तथ्य यही है अस्तित्व स्वयं सहअस्तित्व के रूप में नियमित है फलत: अस्तित्व में व्यवस्था अक्षुण्ण है। मानव भी अस्तित्व में अविभाज्य है। अतएव नियम त्रय पूर्वक ही मानव मानवापेक्षा और जीवन अपेक्षा को सार्थक बना सकता है।
इस सहज आशय के साथ ही यह तथ्य हर मेधावी व्यक्ति में,से, के लिए स्पष्ट होना स्वाभाविक है कि हम सर्वमानव बंधन मुक्ति रूपी जागृतिपूर्वक ही सर्वतोमुखी समाधान सम्पन्न होते हैं। ऐसे जागृति सम्पन्नता में, से, के लिए मानवीयतापूर्ण शिक्षा-संस्कार विधि ही एक मात्र उपाय है। मानवीयतापूर्ण शिक्षा-संस्कार का मूल वस्तु जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन ज्ञान, मानवीयतापूर्ण आचरण ज्ञान है। यह मानव जागृति पंरपरा के लिए सार्थक सिद्ध होता है।