अध्यात्मवाद

by A Nagraj

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साथ एक से अधिक चन्द्रमा (उपग्रह) का होना भी बताया गया। ये सब देखने के क्रम में ही विस्तृत आंकलन मानव के पास पहुँच चुका है।

उक्त देखने की परिकल्पना विधि से मानव पर जो कुछ भी प्रतिबिम्बित, प्रभावित रहता है वह सब मानव के लिये देखने की वस्तु के रूप में रहता ही है। उल्लेखनीय तथ्य यही है आँखों से अथवा सभी ज्ञानेन्द्रियों द्वारा देखा हुआ वस्तु अपने स्वरूप में दिखता नहीं। यह बात सर्वेक्षण पूर्वक प्रमाणित होता है कि आँखों पर ही वस्तु का सर्वाधिक भाग प्रतिबिम्बित होता है। बाकी अन्य प्रणालियों से उतना अधिक भाग चित्रित नहीं हो पाता है। आँख के अनन्तर शब्द और कहानी द्वारा मानव की कल्पना में बहुत सारा चीज आता है। ऐसे कथाओं के आधार पर किये गये कल्पनाएँ आँखों में आता नहीं। यही मुख्य मुद्दा है। सर्वमानव के साथ यही घटना घटती रहती है। चाहे कितने ही श्रेष्ठ अभ्यासों में परिपक्व क्यों न हुआ हो, चाहे सामान्य व्यक्ति क्यों न हो इस तथ्य का सर्वेक्षण हर व्यक्ति कर सकता है। यही मुख्य बिन्दु है आँखों से अधिक कल्पना होता है। साथ ही कल्पनाएँ आँखों में दिखती नहीं है। यही व्यथा हर मानव के साथ कमोबेशी बना हुआ है ही। इस मुद्दे में मुख्य रूप में जो विषमता का आधार है वह है देखने का परिभाषा। अभी तक आँखों पर जो कुछ भी प्रतिबिम्बित रहती है, दिखने की वस्तु यही है ऐसी ही मान्यता के आधार पर मानव सहज आँखों से अधिक शक्तिशाली यंत्र-उपकरण को बनाकर भी देखा गया। उपकरणों से दूर की चीज अथवा बहुत छोटी चीज को देखा भी है। इन उपकरणों से परमाणुओं एवम् परमाणु अंशों को देखने का दावा भी किये हैं और दूर में स्थित ग्रह-गोलों को, नक्षत्रों को देखने का सत्यापन किये हैं।

यह सर्वविदित तथ्य है आँखों में जो कुछ भी प्रतिबिम्बित होती है इसे आगे देखने पर पता चलता है मानव की आँखों में जो कुछ भी घटना और रूप दिख पाता है वह आंशिक भाग ही रहता है। हर रूप स्थिति में गति होना पाया जाता है। इस क्रम में रूप का परिभाषा जो आकार, आयतन, घन है उसमें से आकार का ही आंशिक भाग आँखों में प्रतिबिम्बित होता है। आकार और आयतन, घन अविभाज्य है। जो कोई भी आकार है सत्ता रूपी ऊर्जा में, शून्य में समायी रहती है, सभी ओर से सीमित रहता ही है। यही उस वस्तु का विस्तार अथवा आयतन का तात्पर्य है।