व्यवहारवादी समाजशास्त्र
by A Nagraj
इसे वांङ्गमयों के आधार पर तर्क विधि से विद्वानों के बीच चर्चित होना देखा गया है। राज्य विधाओं में भी सत्ता संघर्ष, शक्ति केन्द्रित शासन, पीठ और चिन्ह के लिये तमाम घटनायें गुजर चुके हैं। जिसका स्वीकृति आम आदमी के मन में नहीं हो पाता है। इसलिये असंतुष्टि बना ही है। इसलिये इसकी संतुष्टि स्थली का अनुसंधान और प्रकाशन की आवश्यकता है ही।
‘मानव धर्म’ अपने स्वरूप में समाधान और उसकी निरंतरता है। दूसरे तरीके से सर्वतोमुखी समाधान और उसकी निरन्तरता है। अस्तित्व में समाधान का धारक-वाहक केवल मानव ही है। इस धरती पर आज की स्थिति में जैसा भी मानव दिखाई पड़ता है विभिन्न भौगोलिक परिस्थिति, आर्थिक सम्पदा, शक्ति केन्द्रित शासनाधिकार, सम्पन्नता, प्रौद्योगिकी, कृषि, व्यापार, उपभोक्ता संस्कृति व दलाली, उपदेश, समाजसेवा, धार्मिक कार्यक्रमों में कहीं न कहीं किसी न किसी कार्य में लगा मानव को देखा जाता है। यह सब किसी न किसी समुदायगत विचार, धर्म-पंथ, मत, जाति आदि आधारों पर अपना परिचय देता हुआ देखने को मिलता है। इस क्रम में उन-उनकी निष्ठा अपने-आप स्पष्ट हो जाती है। आज तक ऐसा कोई परंपरा अध्ययनगम्य नहीं हो पाया जो सर्वतोमुखी समाधान विधि को अध्ययनगम्य कराया। अतएव सर्वतोमुखी समाधान सम्पन्नता ही मानव धर्म का द्योतक है, प्रमाण है और सर्वाधिक लोगों का अभीष्ट भी है।
मानव जाति एक होने के आधार पर ही मानव धर्म एक होने का अर्थात् सर्वतोमुखी समाधान सबको समीचीन होने का सत्य उद्घाटित हो पाता है। समाधान मूलतः मानव जीवन सहज उद्देश्य और प्रमाण है। इस उद्देश्य की पूर्ति