व्यवहारवादी समाजशास्त्र
by A Nagraj
जागृति मूलक विधि से जागृतिगामी कार्यक्रम सफल होता है। जागृति मूलक अभिव्यक्ति संप्रेषणाओं को कोई न कोई एक मानव अपने अनुसंधान पूर्वक निश्चित चिंतन, अभ्यास, विचार, अनुभव प्रमाण के आधार पर ही इसका अभिव्यक्ति, संप्रेषणा संभव होना पाया जाता है। जागृति सर्वमानवों में स्वीकृत तथ्य है जैसे प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक कार्य, व्यवहार विचारों को जागृतिपूर्वक ही सटीक मानने का प्रमाण वर्तमान होना पाया जाता है। हर व्यक्ति जागृति पूर्वक ही दिशा, मार्ग, कोण, संस्था, विकास, ह्रास, जागृति, परमाणु, अस्तित्व, सहअस्तित्व, मूल्य, मूल्यांकन, समाधान, प्रमाण-प्रामाणिकताओं को अभिव्यक्त व संप्रेषित करता है, मार्ग और दिशा इन दो मुद्दों पर विचार कर देखें।
मानव यह आदिकाल से मानते ही आया है कि हमें दिखता है। देखने की मूल क्रिया आँखों को माना गया है, आँखों में जैसा भी दिखता है वह हाथों से वैसा, हाथों के जैसा नाक से, नाक जैसा कान से, कानों से जैसा जीभ से, न दिखकर हर वस्तु का विभिन्न आयाम उन-उन ज्ञानेन्द्रियों से पहचान में आता है। जैसे कि एक आँवले को आँखों से देखने से, जीभ से, और हाथों से देखने पर विभिन्न आयाम दिखती है, गंध से भी भिन्न आयाम दिखाई पड़ती है, आँखों से केवल आकार, आयतन, घन में से आकार आयतन का कुछ अंश समाती है और चीजें आँखों में आती नहीं। इन आँखों से देखी हुई एक मार्ग को देखने पर भी मार्ग का चौड़ाई कुछ दूरी तक लम्बाई आँखों से आता है। कहाँ तक मार्ग गया है, वहाँ तक आँखों से दिखाई आता नहीं है; जहाँ तक आदमी को जाना है वहाँ तक मार्ग है, यह तथ्य समझ में आता है।