व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

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जड़-चैतन्य प्रकृति के संबंध में स्पष्टतया समीकरण होता है। परमाणु अंशों से ही परमाणु रचित रहना पाया जाता है। हर अवस्था में आवेश अव्यवस्था का द्योतक है जैसे मानव में पायी जाने वाली छः प्रकार के आवेश अव्यवस्था का द्योतक होना देखा गया है। मानव में घटित होने वाले आवेशों को काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य के रूप में गणना किया गया है। यह मानव कुल में चर्चित, विश्लेषित, निष्कर्षित विवशता है। प्रत्येक आवेश विवशता के रूप में मानव सहज मानस विधि से मूल्यांकित होता है। मानव सहज मानसिकता मानवीयतापूर्ण विधि से कार्यरत रहना पाया जाता है।

किसी व्यक्ति, परिवार, समुदाय को अथवा संपूर्ण समुदायों को विवशतायें स्वीकृत नहीं हो पाती हैं। यही मुख्य बिन्दु है जिस पर विचार करना आवश्यक है। विवशताओं से मुक्ति हर एक मानव में आवश्यकता के रूप में होना पाया जाता है, ऐसे विवशता का मूल रूप ही बंधन है। ऐसे बंधनों के स्वरूप को आशा, विचार, इच्छा बंधनों के रूप में देखा गया है। यह जीवनगत क्रिया रूपी आशा, विचार, इच्छायें भ्रमित रहने पर्यन्त बंधन का, बंधन पर्यन्त आवेशों का, सम्पूर्ण आवेश पर्यन्त विवशताओं का होना आंकलित होता है। इसे प्रत्येक व्यक्ति निरीक्षण, परीक्षण, सर्वेक्षण पूर्वक समझ सकता है।

मानव जीवन के अध्ययन क्रम में यह पाया गया है, जीवन ही भ्रम अथवा अजागृतिवश किये जाने वाली क्रियाकलाप भ्रम के रूप में बंधन को और जागृति पूर्णतापूर्वक बंधन से मुक्ति को अनुभव करना एक सहज क्रिया है। इस प्रकार जीवन जागृति ही बंधन मुक्ति का स्वरूप होना, कार्य होना, व्यवहार होना, व्यवस्था और आचरण होना पाया गया है।