व्यवहारवादी समाजशास्त्र
by A Nagraj
को मिला। इन चारों आयामों में मानवीयता को समावेश कर लेना ही मानवीयतापूर्ण परंपरा का तात्पर्य है। जैसा मानवीयतापूर्ण शिक्षा-संस्कार, विधि एवं व्यवस्था, संस्कृति, सभ्यता ही मानव परंपरा में अखण्डता का सूत्र है।
मानव परंपरा का संतुलन अखण्ड समाज और सार्वभौम व्यवस्था के रूप में प्रामाणिक होना सहज है। यह दोनों अविभाज्य रूप में प्रतिष्ठा और गरिमा है। मानव कुल का संतुलन सर्वतोमुखी समाधानपूर्वक ही सम्पादित होना पाया जाता है क्योंकि सर्वतोमुखी समाधान सम्पन्न परिवार संतुलित रहना पाया गया है। हर परिवार में एक से अधिक व्यक्तियों का होना सर्वविदित है अथवा सम्मिलित कार्य-व्यवहार का होना पाया जाता है। परिवार की परिभाषा भी इसी तथ्य को पुष्ट करता है यथा परिवार में प्रस्तुत अथवा सम्मिलित सभी व्यक्ति एक दूसरे के साथ संबंध को पहचानते हैं एवम् मूल्यों का निर्वाह करते हैं, मूल्यांकन करते हैं और उभय तृप्ति पाते हैं और परिवार सहज आवश्यकता से अधिक उत्पादन कार्य में सभी पूरक होते हैं। इन्हीं आधारों पर समाधान और समृद्धि का प्रमाण प्रस्तुत हो पाता है। मानव का परिभाषा समाहित रहता ही है यथा मनाकार को साकार करने वाला मनः स्वस्थता सहज प्रमाण प्रस्तुत करने वालों के रूप में होना देखा गया है।
उद्देश्य - समाज परिभाषा में पूर्णता की ओर निर्देश है, अस्तित्व में परमाणु का विकास और जागृति सहज अध्ययन क्रम में गठनपूर्णता, क्रियापूर्णता, आचरणपूर्णता और इसकी निरंतरता को देखा गया है। देखने का तात्पर्य समझने से ही है। परमाणु का वैभव को, अस्तित्व में व्यवस्था की मूल इकाई के रूप में इनके कार्यकलापों को देखा गया है। यह