व्यवहारवादी समाजशास्त्र
by A Nagraj
शताब्दी के दसवें दशक तक) धर्म व राज्य के इतिहास के अनुसार मतभेद, युद्ध, कहानियाँ लिखा हुआ है। ये सब इतिहास वार्ता से सकारात्मक विधि से पता चलता है कि राज्य और धर्म पूरकता विरोधी हैं। जबकि मानव कुल में सर्वशुभ और उसकी निरन्तरता आवश्यक है। यह भी अनुसंधान का मुद्दा है।
आदिकाल से सभी धर्म और राज्य जनसामान्य के सुख-चैन का आश्वासन ग्रन्थों और भाषणों में देते रहे हैं। धर्म व राज्य गद्दियाँ सदा ही सम्मान का केन्द्र रहे हैं। लोक सम्मान इनमें अर्पित होता ही आया है। बीच-बीच में विद्रोह भी घटित होता रहा व दोनों गद्दियों में चौमुखी असमानता देखने को मिलता है।
शोध के लिए प्रश्न :-
सर्वतोमुखी समाधान कैसे हो ?
सर्वशुभ कैसे हो ?
असमानता निराकरण कैसे हो ?
चौमुखी असमानताएँ :
धनी/निर्धनी : जो संग्रह किए हो वह धनी।
बली/दुर्बली : जो ज्यादा मार-काट करता हो वह बली।
ज्ञानी/अज्ञानी : जो ज्यादा प्रवचन करता हो ज्ञानी। जो प्रवचन सुनता हो अज्ञानी।
विद्वान/मूर्ख : जो ज्यादा किताब पढ़ा हो वह विद्वान।