व्यवहारवादी समाजशास्त्र
by A Nagraj
समपर्ण, भाग और कर के रूप में प्रभावित रहना देखा गया। कालक्रम विज्ञान युग के अनंतर अधिकांश लोगों में संग्रह, सुविधा, भोग की आवश्यकता जग गई। इसके लिये संघर्ष ही एक मात्र रास्ता दिखाई पड़ा। इसलिये हर व्यक्ति, परिवार, समुदाय परस्पर संघर्ष के लिये अपने को तैयार करता रहा। आज भी सर्वाधिक व्यक्ति, परिवार, समुदाय संघर्ष के लिए तैयारी करता हुआ देखने को मिलता है। इसे हर व्यक्ति देख सकता है। भक्ति विरक्ति के मार्ग-दर्शकों के रूप में पहचाने गये विविध प्रकार के धर्म गद्दी यती, सती, संत, तपस्वी, ज्ञानी, भक्त, विद्वान ये सब अपने तौर पर बहुत सारा प्रवचन उपदेश करने के उपरान्त भी आमूलतः कोई प्रमाण परंपरा के रूप में व्यवस्था और शिक्षा के अर्थ को सार्थक बनाने के लिये अभी तक पर्याप्त नहीं हुआ। दूसरी विधि से शिक्षा व्यवस्था, अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था में, से, के लिये आवश्यकीय सूत्र-व्याख्या प्रमाण विधियाँ किसी एक परंपरा से अथवा संपूर्ण परंपराएं मिलकर अध्ययन गम्य विधि से प्रस्तुत नहीं हो पायी। इन्हीं कारणवश पुनर्विचार की आवश्यकता समीचीन हुई। विकल्प प्रस्ताव के रूप में प्रस्तुत है।
आस्थावादी विचारों, प्रतिबद्धताओं सहित व्यक्त किया गया निष्ठा को पंथ, संप्रदाय, मत और धर्म के नाम से बताया गया है। ऐसी निष्ठाएँ एक-एक विभिन्नता के साथ देखने को मिली। यही आदर्शों का भी आधार होना पाया गया। ऐसी निष्ठाओं को सर्वाधिक लोग आदर्श मानकर स्वीकारते आये हैं। जैसे - 1. पूजा करने का तरीका, 2. इसके लिए उच्चारण का तरीका, 3. आशयों का तरीका, 4. मान्यताओं का तरीका। इन सबके मूल में पाये जाने वाले रहस्यमयी आधार जैसे - ईश्वर, देवी-देवता, ब्रह्म, परमात्माओं का स्वरूप, कार्य, महिमा