व्यवहारवादी समाजशास्त्र
by A Nagraj
के साथ देखना आज की स्थिति में प्रचलित है। सभी समुदायों के साथ कोई न कोई भाषा बना ही रहता है। भाषा, संग्रह, सुविधा और सामरिक क्षमता के योगफल में विकसित, अविकसित, विकासशील के नामों से देशों को, समुदायों को पहचानने की तर्ज अथवा समीक्षा आज प्रचलित है।
आज की स्थिति में विज्ञान शिक्षा की स्वीकृति सभी देश, सभी समुदायों में सहज रूप में होना पाया जाता है। ऐसे विज्ञान और तकनीकी से जो घटित हुआ वह पहले स्पष्ट हो चुका है। विज्ञान और वैज्ञानिकों का तर्ज प्रकृति पर विजय पाने की घोषणा रही, वह धीरे धीरे धीमा होता हुआ देखने को मिलता है। विशेषकर विज्ञान संसार अपने संपूर्ण ज्ञान प्रक्रिया सहित संतुलन और संभावना के पक्षधर के रूप में दिखते हैं। इनके अनुसार संतुलन का तात्पर्य अपने प्रयोग विधि से जो कुछ भी घटना रूप में यंत्रों को प्राप्त किये यही इनका आद्यान्त प्रमाण है। ऐसे यंत्र और उनके अनुमानानुसार कार्य कर जाना संतुलन मानते हैं और ऐसे यंत्र अनेक बनने की सम्भावनाओं पर ध्यान दिये रहते हैं। जबकि मानव कुल का संतुलन मानव - मानव से, मानव और नैसर्गिकता से अपेक्षित है। यह प्रत्येक व्यक्ति अपने में समझ सकता है जबकि संतुलन मानव का सहअस्तित्व सहज आवश्यकता उपलब्धि और उसका उपयोग-सदुपयोग और प्रयोजनों के रूप में होना स्वाभाविक है। प्रयोजन सदा ही संतुलन है जिसकी अपेक्षा सर्वमानव में होना पाया जाता है। संतुलन ही अभय समाधान के रूप में और अभय समाधान सहज विधि से सहअस्तित्व क्रम में समृद्धि का होना पाया जाता है। सहअस्तित्व क्रम का तात्पर्य चारों अवस्थाओं में परस्पर उपयोगिता, पूरकता ही प्रमाणित होने से है। अभय-समाधान क्रम का तात्पर्य व्यवस्था और समग्र