व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

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घटनाओं से भयभीत अथवा प्राकृतिक संपदा से प्रलोभन मानस सम्पन्न मानव इस आवाज को स्वीकार कर लिया, अपने पक्ष का है मान लिया। इसी बीच विज्ञान भले ही सामरिक मानसिकता की पुष्टि में कार्य किया हो क्योंकि उसे राजाश्रय की आवश्यकता रही है। साधारण रूप में समीचीन परिस्थिति के अनुसार जो कुछ भी विज्ञान और तकनीकी से संभव हो पाया उससे मानव सहज देखने-सुनने-करने की जो प्रवृत्तियाँ रही है, जिसको हर मानव ही जीवन सहज प्रवृत्तियों के आधार पर (चाहे वह भ्रमित रहा हो, निर्भ्रमित रहा हो) करते ही आया है। इसमें पारंगत व्यक्ति का निश्चित गति दूरी के आधार पर थी और बारम्बार उसी कार्य को सटीक रूप में प्रस्तुत करने की आवश्यकता व प्रवृत्तियाँ कार्यों के रूप में प्रमाणित थी उससे कहीं अधिकाधिक, मानव में ही वांछित रूप में गतियाँ स्थापित हुई। यथा दूरश्रवण, दूरदर्शन, दूरगमन प्रौद्योगिकी स्वचालित, यंत्र-उपकरण कृषि कार्यों का यंत्रीकरण के रूप में मानव परंपरा को करतलगत हुआ। भौतिक रासायनिक शोध जितने भी हो पाये उन्हीं के आधार पर जितने भी यंत्र, रचनाएं सम्पन्न हुई उसका उपयोग सामान्य जनता के लिये उपलब्ध हो गया। मानसिकता और समझ समुदाय मानसिकता का मूलभूत आधार जो पहले चित्रित कर चुके हैं वह यथावत् रहते हुए देखने को मिलता है।

हर समुदायों में संस्कृतियों के संबंध में जो आधार देखने मिलते है वह यही है कैसा गाते है, कैसा नाचते हैं, कैसा शादी करते हैं, जन्म और मृत्यु घटनाओं में कैसे उत्सव मनाते हैं, कैसे अलंकार करते हैं, यही सब प्रधान मुद्दे हैं। इसके बाद आज की स्थिति में अति प्रधान मुद्दा स्वास्थ संरक्षण है। स्वास्थ्य संरक्षण का प्रमाण संग्रह, सुविधा, भोग, संघर्ष कार्यों