व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

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  • भ्रमित रूप में अपने इच्छा, कामना और कल्पनाओं को एक दूसरे तक पहुँचाने के लिये भाषाओं का प्रयोग किया गया।
  • देश - इस धरती पर किसी सीमित भौगोलिक परिस्थिति सहित क्षेत्रफल है।

वक्तव्य - इस क्षेत्रफल में निवास करने वालों को उस क्षेत्र का नाम दिया जाता है।

  • धन - संग्रह के आधार पर। शोषण पूर्वक ही संग्रह होता है।
  • पद - भ्रमित रूप में मान्य शक्ति केन्द्रित शासन में भागीदारी।

जागृति क्रम में दो पद (पशुमानव, राक्षसमानव) और जागृति पूर्वक तीन पद है। अस्तित्व में चार पद हैं - प्राणपद, भ्रांतपद, देवपद और दिव्यपद (पूर्णपद) हैं। जिसको सटीक देखा गया है।

ऊपर वर्णित क्रम में विविध समुदायों के रूप में पनपता हुई परंपरायें अपने-अपने परंपरानुगत विधि से पीढ़ी से पीढ़ी को क्या-क्या सौंपते आये और इस बीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक में जीती जागती पीढ़ी को क्या से क्या सौंप गया है। इन मुद्दों पर एक सामान्य अवलोकन आवश्यक है।

परंपरा विगत में मानव, मानव के साथ क्या किया? मानव मानवेत्तर प्रकृति के साथ क्या किया? यही दो अवलोकन का मुद्दा है।

अभी तक अनेक समुदाय परंपराओं के रूप में विविध आधारों के साथ पीढ़ी से पीढ़ी को अनुप्राणित करता हुआ देखा जा रहा है। अनुप्राणित करने का तात्पर्य जिस-जिस परंपरा जिन