व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

Back to Books
Page 181

वर्तमानित रहता है। इसी आधार पर मित्र संबंध परस्पर अभ्युदय के लिये कामना, कार्य, मूल्यांकन करने में समर्थ रहता ही है। मित्र संबंध में भाई-भाई, बहन-बहन संबंध के सदृश जाँच, पड़ताल, विश्लेषण, निष्कर्ष, मूल्यांकन सहायक होना पाया जाता है। दूसरे भाषा में सहायक होना ही सार्थकता है। हर संबंध कम से कम दो व्यक्तियों के बीच होना पाया जाता है। भाई और मित्र संबंध में समानता है। इसको आमूलतः विश्लेषण करने पर लड़कों के साथ लड़कों की मित्रता, लड़कियों की मित्रता लड़कियों से हो पाता है। क्योंकि आशय बहिन-बहिन और भाई-भाई का ही संबंध है। इस संबंध का पावन रूप उभय जागृति, कर्तव्य, दायित्व उसकी गति प्रयोजन और उसका मूल्यांकन विधि से ही मित्रता और भाई-बहन संबंध सदा-सदा ही मानव परंपरा में पावन रूप में उपकार विधि और उसका शोध, निष्कर्ष को प्रस्तुत करते ही रहेंगे। पावन का तात्पर्य व्यवस्था के अर्थ में है। यही उपकार का स्वरूप है। यद्यपि सभी संबंधों में आशित, इच्छित, लक्षित और वांछित तथ्य समाधान, समृद्धि अभय, सहअस्तित्व ही है। इस आशय अथवा आवश्यकता की आपूर्ति और इसके सर्वसुलभ होने के लिये समझना-समझाना, करना-कराना, सीखना-सीखाना स्वाभाविक प्रक्रिया है। इसी क्रम में समाज गति, व्यवस्था, व्यवस्था में भागीदारी, स्वाभाविक रूप में मूल्यांकित होता है। ऐसे मूल्यांकन प्रणाली से ही मानव परंपरा में मानवीयतापूर्ण प्रणाली, पद्धति, नीति का दृढ़ता सुखद, सुन्दर, समाधान, समृद्धिपूर्वक प्रमाणित होना नित्य समीचीन रहता है। ऐसे सर्ववांछित उपलब्धि के लिये मित्र संबंध अतिवांछनीय होना पाया जाता है।

4. गुरू-शिष्य संबंध :- इस संबंध में संबोधन का आशय सुस्पष्ट है। एक समझा हुआ, सीखा हुआ, जीया हुआ का पद