व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

Back to Books
Page 175

का सम्पूर्णता है। इस क्रम में प्रमुख मुद्दा और प्रमाण परिवार में समाधान, समृद्धि समस्त परिवार के परस्परता में अभय, सहअस्तित्व सार्थक होने का, वर्तमान में चरितार्थ होने की स्थिति और गति ही जागृत मानव पंरपरा है। इस प्रकार सम्मिलित रूप में सम्पूर्ण मानव में सर्वशुभ उक्त चारों वैभव जागृति के साथ सूत्रित रहता है। अतएव उदारता और दयापूर्ण कार्य-व्यवहार हर मानव में, हर संबंधों में और हर पदों में व्यवहृत होना स्वाभाविक है। इसलिये हर संतान के साथ उदारता और दयापूर्ण कार्य सम्पन्न होना स्वयं स्फूर्त होता ही है। यही माता-पिता के साथ प्रौढ़ संतान का कार्य-व्यवहार कृतज्ञता पूर्वक, उदारता सहित सम्पन्न होना स्वाभाविक है। इस प्रकार जागृत परंपरा सहज संगीत और स्वर समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व के रूप में वैभवित होना पाया जाता है।

2. भाई-बहन :- भाई-भाई, भाई-बहन, बहन-बहनों के बीच उनके संबंध और परस्पर परीक्षण कार्यकलाप जागृतिगामी दिशा, व्यवहार और कार्यप्रणाली के साथ गतिशील होता है। यही परस्पर पूरकता विधि को प्रमाणित करता है। इसका स्रोत मानवीयतापूर्ण शिक्षा-संस्कार परंपरा ही है। बाल्यावस्था से ही घर परिवार, शिक्षण संस्थाओं में मानवीयतापूर्ण शिक्षा-संस्कार सुलभ होना सहज रहता ही है। इसके फलस्वरूप प्राप्त शिक्षा-संस्कार और कल्पनाशीलता, कर्मस्वतंत्रता के योगफल में मुखरण होना स्वाभाविक क्रिया है। मुखरण होने का तात्पर्य हर विद्यार्थी अपने-अपने ढंग से प्रकाशित-संप्रेषित होना ही है।

प्रत्येक जीवन, मानव पंरपरा में जागृति और जागृतिपूर्ण होने और प्रमाणित होने के उद्देश्य से ही इस शरीर को जीवन्त