व्यवहारवादी समाजशास्त्र
by A Nagraj
होना देखा गया है। सर्वशुभ ही मानव परंपरा में, से, के लिये समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व ही है। यही जीवन जागृति है। जीवन में, से, के लिये सुख, शांति, संतोष, आनन्द है। सुख, शान्ति, संतोष, आनन्द यह जीवन सहज शक्तियों और बलों में पूरकता का ही फलन है। सर्वशुभ का प्रमाण जागृत जीवन शक्ति और बलों की सम्मिलित अभिव्यक्ति, संप्रेषणा और प्रकाशन है। इस विधि से हर परिवार मानव अपने सफलता और समग्र मानव के सफलता को मूल्यांकित कर पाता है। यही गरिमा का तात्पर्य है।
हर जागृत, स्वायत्त परिवार मानव ही अभिभावक के रूप में होना स्वाभाविक है अथवा माता-पिता के रूप में होना स्वाभाविक है। ऐसे अभिभावकों में उदारता और दयापूर्ण कार्य-व्यवहार स्वाभाविक रूप में बना रहता है। मानव अपने स्वायत्तता के साथ ही ऐसी अर्हता से सम्पन्न हुआ रहता है। परिवार में समाधान और समृद्धि वैभव के रूप में रहता ही है। ऐसा वैभव हर परिवार में मानवीयतापूर्ण पद्धति, प्रणाली, नीति से सर्वसुलभ हो जाता है। इस क्रम और विधि से मानव परंपरा में कोई विपन्नता का कारण शेष नहीं रह जाता। परिवार मानव के स्वरूप में यह वैभव सदा-सदा प्रमाणित रहता ही है। न्याय सुलभता, उत्पादन सुलभता हर परिवार मानव का प्रमाण अथवा अभिव्यक्ति है। समृद्धि, समाधान के योगफल में ही मानव परंपरा का वैभव प्रमाणित होता है। इससे कम में सम्भावना ही नहीं, इससे अधिक की आवश्यकता ही नहीं। समाधान-समृद्धि सहज हर अनुभव के अनुरूप हर अभिभावक अपने संतानों में संस्कार डालने में समर्थ होते ही हैं। क्योंकि समाधान-समृद्धि, दिशा और प्रक्रिया से हर अभिभावक गुजरे रहते हैं फलस्वरूप उसी दिशा में संस्कार आरोपण संबोधन नाम से चलकर