व्यवहारवादी समाजशास्त्र
by A Nagraj
गम्यस्थली और आवश्यकता का संयोजन बना ही रहता है। इसी प्रकार से सम्पूर्ण प्रौद्योगिकी, कृषि, पशुपालन, ग्रामोद्योग, कुटीर उद्योग, हस्तकला, लघु-गुरू उद्योग, समान्याकांक्षा, महत्वाकांक्षा संबंधी वस्तुओं को पाना प्रयोजन हो जाता है। इसके लिये चिन्हित विधि को अपनाना होता है। इसके मूल में आवश्यकताएँ मानव में प्रसवित रहती ही हैं।
सहअस्तित्व सहज ज्ञान, दर्शन, विवेक, विज्ञान सहज तकनीकी सम्पन्न बौद्धिकता सहित मानव, मानव को पहचानने की विधि, परमाणु में विकास, विकास क्रम में गठनपूर्णता, जीवन पद, जीवन सहज जागृति की आवश्यकता उसका निश्चित प्रयोजन, उसे प्रमाणित करने के लिये चिन्हित प्रणाली का होना नियति सहज कार्यक्रम है। नियति सहज का तात्पर्य विकास और जागृति से है। जागृति का प्रमाण या जागृति का धारक, वाहक इस धरती में केवल मानव ही है। जागृति सदा ही सर्वतोमुखी होना पाया जाता है। जागृति, सर्वतोमुखी समाधान के रूप में प्रयोजित होता है।
जीवन अपने स्वरूप में प्रत्येक मानव में समान रूप में कार्यरत है और होने की संभावना से परिपूर्ण है। इसे इस प्रकार देखा गया है कि जीवन रचना सम्पूर्ण जीवन में समान है। जीवन शक्तियाँ अक्षय रूप में हर जीवन में समान है। जीवन लक्ष्य प्रत्येक जीवन का समान है। जीवन सहज कार्यकलाप प्रत्येक जीवन में समान है। इन सभी वैभवों का प्रमाण मानव ही है। जागृत मानव में जीवन सहज लक्ष्य सार्थक होने के लिये चिन्हित मार्ग स्पष्ट रहना, यही चिन्हित मार्ग को अर्थात् जीवन जागृति को परंपरा के रूप में अर्थात् धारक-वाहकता पूर्वक पीढ़ी से पीढ़ी सहज सुलभ