व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

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प्रश्न का पुर्नप्रश्न प्रतिप्रश्न ही वांङ्गमय का आधार बनता है। भ्रम विधि से प्रत्येक तर्क प्रश्न में ही अन्त होता है इसलिये इसमें कोई निर्देश संदेश स्पष्ट नहीं हो पाता है। जबकि हर संदेश ज्ञान क्रिया, दर्शन क्रिया विधि से समाधान के रूप में प्रमाणित होता है। यही देश, क्रिया और काल विधि से हर निर्देश समाधानित होता है। देश, काल, क्रियाएँ एक दूसरे से गुँथे हुए, सधे हुए विधि से प्रवाहित रहना पाया जाता है। सम्पूर्ण देश काल क्रियाएं सहअस्तित्व सहज विन्यास है। देश का तात्पर्य, यह धरती अपने में एक देश है । इस धरती में अनेक देशों को विभिन्न आकार प्रकार से पहचाना गया है। ऐसे विभिन्न देशों में विभिन्न वस्तुएं न्यूनाधिक होना पाया जाता है। जैसे किसी देश में लोहा (अयस्क) अधिक होता है, किसी देश में न्यूनतम होता है। इसी प्रकार सभी प्रकार के धातुओं को देश काल विधि से पहचाना जाता है। इसी क्रम में वन, वनस्पति, अन्न वस्तुओं का उपज किसी देश में कुछ अधिक होता है और कुछ देश में कम होता है, कम से कम भी होता है। जैसे नीम का पेड़ किसी देश में अधिक होता है किसी देश में कम होता है या नहीं होता है। जीव-जानवरों की परंपरा भी किसी देश में कुछ प्रजाति के अधिक एवं कुछ प्रजाति की कम होता है। मानव जनसंख्या किसी देश में अधिक है, किसी देश में कम है। ये सब गणना कार्य के लिये आधार रूप में देखा जाता है। सम्पूर्ण गणनाएँ सहअस्तित्व सहज पदों अवस्था और उसके अन्तर अवस्थाओं के साथ ही सम्पन्न होता है। और गणनाएँ, यह धरती जैसा अनंत धरती, अनंत सौर व्यूह के रूप में मानव मानस में स्वीकृत हो पाते हैं। इसी के साथ लंबाई, चौड़ाई, उँचाई भी गणना का एक आधार है। ये सभी गणनाएँ मूलतः निर्देश और संदेश कार्य को सम्पन्न करता है। इन्हीं दो