व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

Back to Books
Page 157

सभा क्रम में

संबोधन प्रयोजन

सभा में - जागृति में

भाई-मित्र-बन्धु-बहन - समानता के अर्थ में

समितियों में संबोधन

गुरू-शिष्य - शिक्षा-संस्कार विधा में

आचार्य-आवेदक - न्याय-सुरक्षा विधा में

पितामह, पिता-माता, पुत्र-पुत्री - उत्पादन-कार्य संबंध

आयु के अनुसार - विनिमय-कोष संबंध

सहयोगी - साथी - स्वास्थ्य-संयम विधा में।

परिवार विधि विहित संबोधन, परिवार विधि का तात्पर्य परिवार संबंध से है। जैसे एक ही व्यक्ति किसी का माता, किसी का पुत्री, किसी का बहिन, किसी का पत्नी, किसी का गुरू, किसी का शिष्य, किसी का मित्र, किसी का बंधु संबंधों में पाया जाता है। संबंध की परिभाषा ही पूर्णता के अर्थ में अनुबंध है। अनुबंध का तात्पर्य बोध सहित निष्ठा सहज किसी के प्रति प्रयोजन कार्य और निष्ठा सहित स्वीकृति का सत्यापन ही प्रतिज्ञा होता है। सत्यापन का तात्पर्य संबंध-मूल्य-मूल्यांकन, चरित्र और नैतिकता सहित जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन ज्ञान सहज सहअस्तित्व को प्रमाणों में अभिव्यक्ति, अभिव्यक्ति का स्वरूप अभ्युदय के अर्थ में होना स्पष्ट है। अभ्युदय स्वयं में सर्वतोमुखी समाधन है जिसका कार्य-व्यवहार रूप अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी है।