व्यवहारवादी समाजशास्त्र
by A Nagraj
संग्रह = प्रतीक मुद्रा को भविष्य में सुविधा भोग कामनापूर्वक कोष रचना रूप प्रदान करना।
भोग = भय, शंका, रहस्य मानसिकता सहित वस्तु और यौन सेवन मानसिकता और कार्य- व्यवहार।
इन परिभाषाओं के ढाँचे-खाँचे में सुदूर विगत से आयी समुदाय परंपराएँ सकारात्मक पक्ष के रूप में चित्रित, व्यवहृत किये जाने का साक्ष्य समाजशास्त्र में (प्रचलित) देखने को मिलता है। इसी के साथ समुदाय-समुदायों के बीच वर्तमान घटनाओं के रूप में घृणा, उपेक्षा, युद्ध का भी जिक्र है। इसी के साथ शोषण, अपहरण आदि का भी उल्लेख है। ये सब नकारात्मक पक्ष है। फिर भी इसमें ग्रसित रहने के लिए सभी समुदाय मजबूर है।
समुदायों के रूप में मानव पहचानने का आधार और उनका सीमा चित्रण :-
इस धरती पर मानव में भिन्नताओं सहित परिवार एवं समुदाय को अपनत्व दायरा की मानसिकता के रूप में विकसित होना पाया जाता है। उल्लेखनीय घटना यह है कि द्वेष मुक्त समुदाय एवं परिवार नहीं हो पाये हैं। हर मानव समुदाय को समाज कहता हुआ, समाज कल्याण एवं विकास का भाषण प्रवचन करता है। परिवार का हित चाहता है। परिवारगत कुकर्मों, अत्याचारों को छिपाने में एक दूसरे का सहायक होना सर्वाधिक रूप में देखा गया है। ऐसे समुदाय दो प्रकार के आधारों पर स्पष्ट हुए है। पहला आहार सेवन, वस्त्र, साज सुविधाओं का प्रस्तुतीकरण, आगन्तुकों अतिथियों के साथ संबोधन प्रस्तुति या विवाह आदि घटनाओं का निर्वाह विधि प्रक्रिया, गायन, रचना, गाने की लय, ताल, नृत्य इन