व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

Back to Books
Page 101

प्रयुक्त होता है। कारण, गुण, गणित को किसी भी लिपि, किसी भी भाषा में संप्रेषित करने की स्थिति में उसकी सत्यता एक ही प्रकार से फलवती होती है। इस यथार्थ को समझने के उपरान्त सम्पूर्ण मानव में समझदारी की समानता का विश्वास होना अनिवार्य है। सर्वशुभ घटित होने के क्रम में समझदारी का यह भी एक आयाम है। इस विधि से सम्पूर्ण विवाद, अनर्थ प्रवृत्ति, और रहस्यता से मुक्त मानव परंपरा स्थापित होने के उपरान्त अपने-आप यह सब समाधान में परिणित हो जाते हैं। इसीलिये सर्वतोमुखी समाधान मानव के लिये समीचीन है।

6. मानवीय सभ्यता, संस्कृति, विधि, व्यवस्था सर्वमानव में, से, के लिये समान है -

संस्कृति का स्वरूप के संबंध में पहले भी सामान्य विवरण प्रस्तुत किये गये हैं। मानवीय संस्कृति का पोषण सभ्यता करती है, सभ्यता का पोषण विधि करती है, विधि का पोषण व्यवस्था करती है और व्यवस्था का पोषण संस्कृति करती है। इस प्रकार आवर्तनशीलता क्रम सुस्पष्ट है। संस्कृति का मूलरूप संस्कार है। संस्कार का मूलरूप जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन ज्ञान और मानवीयतापूर्ण आचरण ज्ञान ही है। अस्तित्व और मानव से संबंधित अध्ययन बोधगम्य होना ही शिक्षा-संस्कार का तात्पर्य है। ऐसी शिक्षा-संस्कार ही मानवीयतापूर्ण परंपरा का मार्गदर्शक होता है। मानवीयतापूर्ण परंपरा अपने-आप में ऊपर कहे चारों आयाम सम्पन्न रहता ही है। ऐसी शिक्षा-संस्कार से प्राप्त स्वीकृतियों, अवधारणाओं, अनुभवों, विचार शैली सहित सर्वतोमुखी समाधान मानसिकता से सम्पन्न होना ही मानवीय संस्कार सफलता का प्रमाण है। यही सभ्यता का आधार है। मानवीयतापूर्ण सभ्यता