व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

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पाया जाता है। अतएव इन तीनों विधा में सामरस्यता विधि ही अर्थात् परिवार सभा, ग्राम मुहल्ला सभा और विश्व सभा सहज व्यवस्था हमें सर्वसुलभ कर लेना ही आज के सम्पूर्ण समस्याओं का समाधान है। जितने भी बिगाड़े गये है उसका पुनः सुधार किन्हीं-किन्हीं भागों में पूर्णतया हो सकती है और किसी-किसी भागों में आंशिक सुधार हो सकती है, धरती आज से अधिक स्वस्थ हो सकती है। धरती पर मानव युगों तक समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व पूर्वक रह सकता है। यह व्यवहारवादी समाजशास्त्र का प्रस्ताव है।

7. सर्वमानव में लक्ष्य समान - इसके पहले स्पष्ट किये गये मुद्दों के साथ साथ सर्वमानव में लक्ष्य समानता की बात, तथ्य विभिन्न विधि से स्पष्ट किया गया। मुख्यतः मानव सहज लक्ष्य केवल जागृति और उसका प्रमाण है। प्रमाण केवल परंपरा में ही होना देखने को मिलता है। मानव का प्रमाण मानव परंपरा में ही होना स्वाभाविक है क्योंकि मानव ज्ञानावस्था की इकाई है और संस्कारानुषंगीय अभिव्यक्ति है। संस्कार के मुद्दे पर पहले स्पष्टतया संस्कार स्वरूप प्रक्रिया और प्रमाण के संदर्भ में इंगित कराया है। पूर्णता के अर्थ में बोधपूर्वक स्वीकारने योग्य सम्पूर्ण अध्ययन और उसे अनुभवमूलक विधि से व्यवहार में प्रमाणित करने का सम्पूर्ण क्रियाकलाप ही संस्कार और प्रमाण का तात्पर्य है। संस्कार कार्यकलाप विभिन्न विधियों में पहले से भी इस नाम का प्रयोग किया है। यह विभिन्न समुदायों में विभिन्न प्रकार से क्रियान्वित होते हुए देखने को मिलता है। यह सब प्रयास अवश्य ही प्रयास क्रम में उपादेयी है किन्तु प्रयोजन के अर्थ में अभी तक और कोई अर्थात् पूर्वावर्ती सामुदायिक संस्कार परंपरा में प्रमाणित नहीं हो पाये।