व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

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  • के रूप में पहचाना गया है। यह हर मानव और मानव परंपरा सहज अधिकार के रूप में वर्तमान होना पाया जाता है। ऐसी तृप्ति को मानव परंपरा में प्रमाणित करना हर मानव की अभीप्सा है। इस क्रम में समृद्धि भी एक आवश्यकता है। समृद्धि को इस प्रकार पहचाना गया है कि यह प्राकृतिक ऐश्वर्य पर श्रम नियोजन का ही फलन है। ऐसे सभी आवश्यकीय उत्पादित वस्तुओं के प्रयोजनों को शरीर पोषण, संरक्षण, समाज गति के लिये पहचाना गया है। इस प्रकार यह संविधान समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व को प्रमाणित करने, कराने, करने के लिये मत देने के अर्थ में स्पष्ट है।
  • संविधान का लक्ष्य 1. परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था (मानव धर्म) स्वानुशासन रूपी स्वतंत्रता है। 2. मानव धर्म समाधान सहज तृप्ति (सुख, शांति, संतोष, आनन्द और समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व) और उसकी निरंतरता ही “स्वत्व” है।
  • लक्ष्य सहज प्रमाणों का मूल्यांकन विधि - 1. स्वयं में, एक दूसरे के परस्परता में यथा प्रत्येक मानव स्वयं में, परस्पर मानव संबंधों में और नैसर्गिक संबंधों में। 2. समझदारी, समझदारी के अनुरूप निष्ठा (कर्तव्य, दायित्व के रूप में किया गया निर्वहन और उसका फल-परिणाम) सहज विधि।

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