व्यवहार दर्शन* (Raw)

by A Nagraj

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:: कर्त्तव्य में निष्ठा ः- उत्तरदायित्व का वहन ही कर्त्तव्य में निष्ठा है ।

:: स्नेह ः- न्याय, धर्म एवं सत्य की निर्विरोधिता ही ‘स्नेह’ है ।

:: अनुराग ः- निर्भ्रमता से प्राप्त आप्लावन की ‘अनुराग’ संज्ञा है ।

:: शांति ः- वेदना विहीन वैचारिक स्थिति ।

:: संतोष ः- अभाव का अभाव (समृद्धि, समाधान) अथवा अभाव से अभावित चित्रण विचार सम्पन्नता ।

:: प्रेम ः- दिव्य मानव, देव मानव की सान्निध्यता, सामीप्यता, सारुप्यता तथा सालोक्यता प्राप्त करने हेतु अंतिम संकल्प की ‘प्रेम’ संज्ञा है । दया, कृपा, करूणा की संयुक्त अभिव्यक्ति ही प्रेम है ।

:: सहजता ः- जागृति सहज मानसिक, वैचारिक, चिंतन स्थिति में संगीत है, उसकी ‘सहजता’ संज्ञा है ।

ः- रहस्यता से रहित जो मानसिक स्थिति है उसकी सहजता संज्ञा है ।

:: सरलता ः- जागृति सहज स्वभावपूर्ण व्यवहार की ‘सरलता’ संज्ञा है । कायिक, वाचिक, मानसिक रूप में नियमों को वचन पूर्वक प्रमाणित करना ।

ः- आडम्बरहीनता अथवा दिखावा रहित व्यवहार की सरलता संज्ञा है ।

:: आनंद ः- सहअस्तित्व में अनुभूति की ‘आनंद’ संज्ञा है ।

:: पूर्णता ः- सर्वतोमुखी समाधान संपन्नता ही ‘पूर्णता’ है ।

:: निर्भ्रमता ः- न्याय, धर्म एवं सत्यतापूर्ण व्यवहार, भाषा, भाव, बोध, संकल्प व अनुभूति की ‘निर्भ्रमता’ संज्ञा है ।

★ विचार का प्रतिरूप ही भाव, भाषा एवं व्यवहार के रूप में परिलक्षित होता है ।

★ न्याय, धर्म एवं सत्यानुभूति योग्य क्षमता से व्यवहार, भाव व भाषा संयमित और परिमार्जित होता है ।

श्र पवित्र विचार ही मनोबल, मनोबल ही कर्त्तव्य निष्ठा, कर्त्तव्य निष्ठा ही समाधान-समृद्धि, समाधान-समृद्धि ही सहअस्तित्व तथा सहअस्तित्व ही पवित्र विचार है, जिससे न्यायवादी व्यवहार प्रतिष्ठित है अन्यथा अवसरवादी व्यवहार अप्रतिष्ठित है ।