व्यवहार दर्शन* (Raw)
by A Nagraj
श्र सफल सामाजिक जीवन व व्यवस्था से व्यक्तियों को अपने विकास हेतु प्रेरणा पाने की अधिक संभावनाएं हैं । लघु मूल्य का गुरु मूल्य की ओर आकृष्ट होना स्वाभाविक ही है और सफल समाज में इस ओर उन्मुख होने के लिए तथा तदनुसार प्रयोग, प्रयास एवं व्यवसाय तथा अध्ययन के लिए उपयुक्त वातावरण, अवसर व साधन उपलब्ध रहता ही है ।
श्र न्याय ही विधान, विधान ही व्यवस्था, व्यवस्था ही ज्ञान, विवेक, विज्ञान व ज्ञान, विवेक, विज्ञान ही नियम, नियम ही नियंत्रण, नियंत्रण ही न्याय है ।
श्र न्याय, विधान, व्यवस्था, ज्ञान व नियम के लिये प्रेरणा देने तथा इसमें निष्ठा उत्पन्न करने के लिये क्रम से व्यवस्थापक, विधायक, विद्वान, विचारक तथा प्रचारक की उपादेयता अपरिहार्य है ।
:: व्यवस्थापक ः- विधि विधान में पारंगत, नैतिकता का आचरण करने-कराने वाले तथा विपरीत आचरण करने वाले को समझदारी पूर्वक सुधार कर सकने वाले व्यक्ति की व्यवस्थापक संज्ञा है ।
:: विधायक ः- विधि विधान में पारंगत वर्तमान वातावरण एवं पर्यावरण व संतुलन के योग्य स्पष्ट नीति-निर्णय करने वाले विद्वान एवं व्यक्तित्व-संपन्न व्यक्ति की ‘विधायक’ संज्ञा है ।
:: विद्वान ः- मानवीयतापूर्ण आचरण सहित, मानव की परस्परता के मध्य में पाये जाने वाली विषमता को समापहरण करने योग्य समाधान का निर्भ्रान्त स्वरूप में अध्ययन कराने वाले व्यक्ति की ‘विद्वान’ संज्ञा है ।
:: विचारक ः- मानवीयतापूर्ण आचरण सहित मानव की परस्परता के मध्य में पाये जाने वाली विषमता को समापहरण करने योग्य समाधान को प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति को ‘विचारक’ की संज्ञा है ।
:: प्रचारक ः- नैतिकता चरित्र एवं मूल्य का, कलापूर्ण ढंग से लोक जन-मानस में, विश्वास उत्पन्न करने वाले को ‘प्रचारक’ की संज्ञा है ।
:: प्रजा ः- नियम सहित मानवीयता पूर्ण आचरण का पालन करने वाले प्रत्येक मानव की प्रजा संज्ञा है ।
:: विचारक तथा विद्वान ही प्रचारक हो सकते हैं ।
श्र शासन और शासक भ्रमित मानव प्रवृत्ति की उपज है । शासक के विचारक तथा विचारक के शासक बनने की संभावना नहीं है क्योंकि शासन करते समय मानव को व्यापक विचार करने का तथा व्यापक विचार करते समय शासन करने का अवकाश व अवसर उपलब्ध नहीं है । विचारक सदा-सदा व्यवस्था का पोषक है । शासक सदा-सदा व्यवस्था का शोषक है ।
श्र जब व्यक्ति व्यवस्था अर्थात् अखंड समाज, सार्वभौम व्यवस्था के अर्थ में समाधान पूर्ण विधि से अपने वैचारिक जीवन की प्रतिष्ठा योग्य क्षमता, योग्यता एवं पात्रता को अर्जित कर लेता है; तब