व्यवहार दर्शन* (Raw)
by A Nagraj
अधिकार पाने का प्रयास सफल नहीं होता । तदनुसार अवसरवादिता, न्यायवादिता पर सफल और सिद्ध नहीं है और न होगा ।
श्र एक का अनेक द्वारा तथा अनेक का एक द्वारा अनुसरण एवं अनुकूलता केवल न्याय पूर्वक किए गए व्यवहार से ही सफल है, अन्यथा असफल है ।
श्र उपरोक्तानुसार ही एक व्यक्ति द्वारा कुटुंब के, एक कुटुंब द्वारा समाज के, एक समाज द्वारा राष्ट्र के, एक राष्ट्र द्वारा विश्व के साथ न्यायसम्मत व्यवहार तथा अनुसरण-प्रणाली है । अनुसरण-प्रणाली से स्वर्गीयता का अनुभव जागृत मानव परंपरा में ही है । इसके विपरीत क्रम से नारकीयता है । यह इसलिए भी सिद्ध है कि गुरुमूल्य को लघुमूल्य में नहीं समाहित किया जा सकता ।
श्र मानवोचित नियम पालन प्रकिया व नीति को अनुकूल तथा इसके विपरीत को प्रतिकूल आचरण की संज्ञा है ।
श्र नियम ही न्याय है, न्याय ही ज्ञान है, ज्ञान ही विज्ञान व विवेक है, विवेक एवं विज्ञान ही समाधान है, समाधान ही नित्य सुख एवं पूर्ण है । सत्य ही नियंत्रण है, नियंत्रण ही नियम है ।
श्र रूप, बल, पद एवं बुद्धि वैयक्तिक संपत्ति है । इनकी सफलता इनके सदुपयोग से ही है, जो सामाजिक तथा बौद्धिक नियम पालन से ही संभव है । ये निम्नानुसार है :-
★ रूप का व्यवहार सच्चरित्रता के साथ, बल का व्यवहार दया के साथ एवं बुद्धि का व्यवहार विवेक एवं विज्ञान के साथ संतुलित रूप में प्रतिष्ठित है । यही नियम व न्याय है ।
श्र उक्त व्यवहार न्यायाश्रित होने पर ही सफल है, अन्यथा अवसरवादिता है, जो क्लेश का कारण है ।
श्र जन, धन एवं यश यह कौटुंबिक और अखंड समाज की संपत्ति है । न्याय सम्मत संबंध निर्वाह की नीति व रीति से, विधि विहित किए गए व्यवसाय, प्रयोग व आविष्कार से तथा अनुसंधान और प्रयोजनार्थ से ही इन संपत्तियों का सदुपयोग सिद्ध हुआ है तथा सफलता मिली है, अर्थात् जन, धन एवं यश का उपयोग कौटुंबिक और अखंड समाज समृद्धि के लिये होना चाहिए, न कि वैयक्तिक । इस प्रकार के न्यायपूर्ण व्यवहार से ही कुटुंब में परस्पर सहयोग, सहकार्य तथा सहअस्तित्व की भावना का विकास संभव है, जिससे परस्परता में विश्वास के प्रति दृढ़ता बनेगी । इस प्रकार अवसरवादी मनोवृत्ति का नाश होगा ।
श्र न्यायवादी व्यवहार से सामाजिक स्तर पर नैतिक मार्ग दर्शन, वैचारिक समाधान योग्य प्रेरणा तथा व्यापक सत्तानुभूति योग्य अध्ययन से अर्थ की सुरक्षा तथा सदुपयोगात्मक नीति का उद्घाटन है । मानवीयता व अतिमानवीयता को बोधगम्य कराने हेतु योग्य अध्यापन और सत्यानुभूति योग्य समाधान व समृद्धि योग्य कर्माभ्यास व परंपरा के पालन हेतु निष्ठा के उद्भव व विकास से सामाजिक जीवन की सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है ।