व्यवहार दर्शन* (Raw)

by A Nagraj

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निर्भ्रमता को उत्पन्न करने वाले कार्य एवं विचार को ‘निर्दोष विचार’ या ‘न्यायवादी विचार’ की संज्ञा है ।

श्र क्लेश, कलह व आतंक का कारण केवल संग्रह, द्वेष, अज्ञान अभिमान एवं भय है ।

श्र अवसरवादी विचार या सदोष विचार - व्यवहार, हृदय, प्राण, मन, वृत्ति, चित्त, बुद्धि के परस्पर विरोधी विचार हैं, जिससे क्षोभ, खेद, तृष्णा, दु:ख, अशांति तथा असंतोष की पीड़ा होती है ।

श्र व्यवहार व हृदय के परस्पर विरोध से क्षोभ, हृदय व प्राण के परस्पर विरोध से खेद, प्राण व मन के परस्पर विरोध से तृषा, मन व वृत्ति के परस्पर विरोध से दु:ख का, वृत्ति व चित्त के परस्पर विरोध से अशांति, चित्त व बुद्धि के परस्पर विरोध से असंतोष तथा बुद्धि के आत्मविमुख होने से अहंकार है ।

श्र व्यवहार; शरीर, हृदय, प्राण व मनाश्रित हैं । फलत: मन: स्थिति क्रम से प्राण, हृदय व कर्म के आकार से कृति-आकृति होती है । मन ही मेधस पर प्रभावपूर्वक आशानुरूप आकार का संकेत करता है तथा बदले में सुखास्वादन चाहता है ।

श्र व्यवहार व हृदय, हृदय व प्राण, प्राण व मन, वृत्ति व मन तथा विरोध व निर्विरोध का प्रभाव मन पर ही है, क्योंकि मन ही रसास्वादन करने वाली जीवन क्रिया है । फलत: मन ही व्यवहार, हृदय, प्राण, वृत्ति, विरोधवश या निर्विरोध से प्राप्त दु:ख व सुख का भोक्ता है ।

श्र कारण क्रिया के अनुकूल सूक्ष्म, सूक्ष्म क्रिया के अनुकूल स्थूल व्यवहार क्रम से जागृति तथा फलस्वरूप समृद्धि व समाधान तथा इसके विपरीत क्रम से ह्रास तथा फलस्वरूप असमृद्धि व समस्या है ।

:: कारण क्रिया ः- आत्मा एवं बुद्धि का सम्मिलित क्रिया की ‘कारण’ क्रिया संज्ञा है ।

:: सूक्ष्म क्रिया ः- चित्त, वृत्ति व मन के सम्मिलित क्रिया की ‘सूक्ष्म क्रिया’ संज्ञा है ।

:: स्थूल शरीर पिण्ड ः- पँचेन्द्रियों से युक्त काया (शरीर) की ‘स्थूल पिण्ड’ संज्ञा है ।

श्र कारण क्रिया के बिना सूक्ष्म क्रिया तथा कारण व सूक्ष्म क्रिया के बिना स्थूल पिण्ड रूपी शरीर का क्रिया कलाप नहीं है ।

ज्ञ मानव सम्पर्क व संबंध में निहित मूल्यों का निर्वाह न होने से ही क्षोभ, विरोध व कठोरता का प्रसव; भौतिक क्रिया में क्षोभ से असमृद्धि व अभाव का प्रसव; शरीर क्षोभ से रोग व क्षीणता का प्रसव; प्राण क्षोभ से उद्विगनता व निरुत्साह का प्रसव; मनःक्षोभ से असहअस्तित्व व दुःख का प्रसव; वृति क्षोभ से आलस्य प्रमाद व अशांति का प्रसव; चित क्षोभ से कृत्रिमता (दिखावा), रहस्यता व असंतोष का प्रसव; बोध रहित बुद्धि से भ्रांति, अज्ञान, अभिमान व कृतघ्नता का प्रसव होता है । अवसादवादी व्यवहार ही क्षोभ का कारण है जो गलती और अपराध से मुक्त नहीं है ।