व्यवहार दर्शन* (Raw)

by A Nagraj

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श्र मानव का समूचा व्यवहार कृतज्ञता तथा कृतघ्नता के आधार पर ही निर्भर करता है तथा मूल्यांकित व समीक्षित होता है ।

:: कृतघ्नता :- जिस किसी से भी उन्नति व जागृति की ओर प्राप्ति में सहायता मिली हो उसे अस्वीकार करना ही कृतघ्नता है ।

“सर्व शुभ हो”