व्यवहार दर्शन* (Raw)
by A Nagraj
श्र सहअस्तित्व में अनुभव ही ज्ञान का उद्घाटन है । सहअस्तित्व में अनुभव में, से, के लिए अध्ययन है । ज्ञान ही विवेक एवं विज्ञान रूप में प्रमाण है । यही ज्ञानावस्था में मानव सहज मौलिकता है ।
★ ज्ञान स्वयं क्रिया न करते हुए अथवा क्रिया न होते हुए मानव जीवन में अनुभव स्थिति में आनन्द सहज वैभव प्रमाण है । अनुभव पूर्वक अभिव्यक्ति ही ज्ञान है । ज्ञान ही जागृत मानव में समस्त सकारात्मक क्रियाओं का आधार अथवा प्रेरणा स्त्रोत है ।
श्र ज्ञान ही व्यापक सत्ता है । इसकी ही शून्य संज्ञा है ।
ज्ञ क्रियाहीनता की स्थिति की शून्य संज्ञा है तथा ज्ञान स्वयम् क्रिया न करते हुए अथवा क्रिया न होते हुए भी समस्त क्रियाओं का आधार और प्रेरणा स्त्रोत है । अतः ज्ञान और व्यापक सत्ता दोनों एक ही सिद्ध होते हैं तथा इसमें अवस्थित होने से ही क्रिया के लिए प्रेरणा प्राप्त है । ज्ञान से रिक्त और मुक्त इकाई नहीं है ।
“सर्व शुभ हो”