व्यवहार दर्शन* (Raw)
by A Nagraj
:: विश्लेषण ः- परिभाषाओं का प्रयोजन के अर्थ में व्याख्या की विश्लेषण संज्ञा है ।
:: परिभाषा ः- अर्थ को इंगित करने के लिए प्रयुक्त शब्द समूह की परिभाषा संज्ञा है ।
श्र व्यापक पूर्ण और इकाईयाँ अनंत हैं ।
:: व्यापक :- जो सर्व देश - काल में विद्यमान हैे तथा नित्य वर्तमान है ।
:: इकाई :- छ: ओर से (सभी ओर से) सीमित पदार्थ पिण्ड की इकाई संज्ञा है । व्यापक वस्तु में सम्पूर्ण इकाईयाँ सहअस्तित्व में अविभाज्य रूप में वर्तमान हैं ।
:: अनंत :- संख्या में अग्राह्य क्रिया की अनंत संज्ञा है जिसको मानव गिनने में असमर्थ है अथवा गिनने की आवश्यकता नहीं बनती, यही अनन्त है ।
श्र व्यापक सत्ता जागृत मानव में, से, के लिये कार्य-व्यवहार काल में नियम के रूप में, विचार काल में समाधान के रूप में, अनुभव काल में आनंद के रूप में और आचरण काल में न्याय के रूप में प्राप्त है क्योंकि सत्ता में संपूर्ण प्रकृति सम्पृक्त अविभाज्य रूप में विद्यमान है । यही सहअस्तित्व है ।
:: काल:- क्रिया की अवधि की काल संज्ञा है ।
:: नियम:- आचरण और क्रिया की नियंत्रण पृष्ठभूमि ही नियम है ।
:: समाधान:- क्यों और कैसे की पूर्ति (उत्तर) ही समाधान है ।
:: आनंद :- सहअस्तित्व रूपी परम सत्यानुभूति ही आनंद है ।
:: न्याय :- परस्परता में मानवीयतापूर्ण व्यवहार ही न्याय है ।
★ मानवीयतापूर्ण व्यवहार ः- धीरता, वीरता, उदारता, दया, कृपा, करुणा पूर्ण स्वभाव; न्याय, धर्म एवं सत्यतापूर्ण दृष्टि और वित्तेषणा, पुत्रेषणा एवं लोकेषणात्मक प्रवृत्ति से युक्त व्यवहार ही मानवीयतापूर्ण व्यवहार है ।
ज्ञ अस्तित्व में, से, के लिए जानने, पहचानने और अनुभव करने का प्रयास व अध्ययन मानव करता रहा है एवं करता रहेगा ।
:: ज्ञान को अनुभव काल में आनंद; सर्वत्र एक सा अनुभव में आने के कारण सत्य; ज्ञान में समस्त क्रियायें संरक्षित और नियंत्रित होने के कारण लोकेश; सर्वत्र एक सा विद्यमान होने के कारण व्यापक; चैतन्य के साथ चेतना; आत्मा से सूक्ष्मतम होने के कारण परमात्मा; प्रत्येक वस्तु सत्ता में सम्पृक्त, सक्रिय रहने के कारण से इसे निरपेक्ष ऊर्जा तथा अपरिणामिता के कारण पूर्ण संज्ञा है ।