व्यवहार दर्शन* (Raw)
by A Nagraj
व्यवहारिकता; व्यवहारिकता से मानवीयता तथा मानवीयता से अखण्ड सामाजिकता है । अखण्ड सामाजिकता के अर्थ में सार्थक है ।
:: अखण्डता :- अखण्डता सार्वभौमता सहज सूत्र व्याख्या रूप में मानव का प्रयोजन ।
:: सामाजिकता:- सम्पर्क एवं संबंध में निहित मूल्यों का निर्वाह ही सामाजिकता है ।
:: आवश्यकता :- निर्वाह के लिए समुचित साधनों के प्रति (जो समझदार परिवार में निर्धारित होता है) तीव्र इच्छा ही आवश्यकता है । यह शरीर पोषण-संरक्षण समाज गति के अर्थ में ।
:: समुचित साधन :- मानव की परस्परता में व्यवहार, प्रयोग एवं उत्पादन को संतुलित, समृद्ध एवं जागृति पूर्ण प्रमाण परंपरा के लिए प्रयुक्त आवश्यकीय साधनों की समुचित साधन संज्ञा है । शरीर पोषण, संरक्षण व समाज गति के लिए अर्पित, समर्पित वस्तुयें समुचित साधन हैं ।
:: प्रयोग :- मानव की आवश्यकता के रूप में प्राकृतिक ऐश्वर्य पर श्रम नियोजन पूर्वक उपयोगिता मूल्य व कला मूल्य को स्थापित करने हेतु सफल होते तक प्रयास ही प्रयोग है ।
:: उत्पादन :- प्रयोग को सामान्यीकृत करने हेतु विकसित क्रिया पद्धति मेें श्रम नियोजन प्रक्रिया की उत्पादन संज्ञा है जिसमें बहुतायत उत्पादन की अथवा निर्माण की कामना सन्निहित रहती ही है ।
:: अर्थोपार्जन :- प्राकृतिक ऐश्वर्य पर उपाय पूर्वक श्रम नियोजन से कला एवं उपयोगिता की सिद्ध मात्रा की धनोपार्जन संज्ञा हैं ।
:: उपयोग :- उत्पादन व सेवा के लिए प्रयुक्त अर्थ की उपयोग संज्ञा है ।
:: उत्पादन :- उत्पादन दो भेद से होता है - सामान्य आकाँक्षा से अथवा महत्वाकाँक्षा से ।
:: सामान्य आकाँक्षा :- आहार, आवास एवं अलंकार में प्रयुक्त वस्तुओं को सामान्य आकाँक्षा संज्ञा है ।
:: महत्वाकाँक्षा :- दूरगमन, दूरदर्शन तथा दूरश्रवण के लिए प्रयुक्त वस्तुओं को महत्वाकाँक्षा संज्ञा है ।
:: सदुपयोग :- परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था में भागीदारी करते हुए तन, मन, धन रूपी अर्थ का नियोजन सदुपयोग है ।
:: प्रयोजन :- जागृति पूर्वक अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था में तन, मन, धन का नियोजन प्रयोजन है ।
:: व्यवहारिकता :- मानवीयता पूर्ण आचरण की व्यवहारिकता संज्ञा है ।